SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 104 ) एक मृग की भी बात सुनी, जो कामातुर हो आलिङ्गन करने को उत्सुक हरिणियों से कह रहा था कि नाहं स्वरोचिस्तच्छीलोन चैवाहं सुलोचनाः ? / निर्लज्जा बहवः सन्ति तादृशास्तत्र गच्छत / / 23 // एका त्वनेकानुगता यथा हासास्पदं जने / अनेकाभिस्तथैवैको भोगदृष्टया निरीक्षितः // 24 // यस्ताहशोऽन्यस्तच्छीलः परलोकपराङ्मुखः / तं कामयत भद्रं वो नाहं तुल्यः स्वरोचिषा / / 26 / / न तो मैं स्वरोचिष ही हूँ और न उसके जैसा मेरा शील ही है। बहुत से मृग उसके जैसे निर्लज्ज हैं तुम उन्हीं के पास जाओ / जिस प्रकार अनेक पुरुषों से सम्पर्क रखनेवाली एक स्त्री की संसार में हँसी होती है उसी प्रकार अनेक स्त्रियों से सम्पर्क रखनेवाले एक पुरुष की भी हँसी होती है। जो स्वरोचिष के समान चरित्र का हो तथा उसी के समान परलोक से विमुख हो, तुम उसी की कामना करो मैं स्वरोचिष जैसा नहीं हूँ। छाछठवाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि स्वरोचिष को उक्त बातें सुन कर अपने ऊपर घणा हुई, उसने अपना मार्ग बदलना चाहा / पर जब वह उन स्त्रियों के निकट पहुँचा तब फिर उन्हीं में आसक्त हो अपना कर्त्तव्य भूल गया और छः सौ वर्ष तक पुनः उनके साथं विहार किया। इस बीच उसे मनोरमा से विजय, विभावरी से मेरुनाद और कलावती से प्रभाव नामक पुत्र पैदा हुए / तब उसने अपने राज्य के तीन भाग कर एक एक भाग पुत्रों को सौंप दिया और स्वयं निश्चिन्त हो अपनी पत्नियों के साथ विहार करने लगा। एक दिन वह जंगल गया और वहाँ एक वाराह को देख उसे ज्यों ही वाण से विद्ध करने को उद्यत हुअा त्यों ही एक मृगी ने उसे रोक उस वन की देवी के रूप में अपना परिचय दिया और अपने को पत्नी के रूप में स्वीकार करने की प्रार्थना की / स्वारोचिष ने उसकी बात मान ली और उससे एक पुत्र पैदा किया जो स्वरोचिष नाम से प्रसिद्ध हुअा। एक दिन स्वरोचिष ने पुनः एक हंस और हंसी का वार्तालाप सुना / हंस भोग के लिये उत्सुक हुई हंसी से कह रहा था कि ....
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy