________________ ANNAPAN ( 100) भरत ने अपने पुत्र सुमति को राज्य देकर वन की शरण ली थी। इस वंश के लोगों ने सप्तद्वीपा वसुन्धरा का शासन किया था। चौवनवाँ अध्याय # इस अध्याय में बताया गया है कि समूची पृथ्वी का विस्तार पचास करोड़ योजन है / इसमें जम्बूद्वीप, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रौञ्च, शाक और पुष्कर ये सात द्वीप हैं / इनमें पूर्व-पूर्व से उत्तरोत्तर द्वीप दुगुने बड़े हैं और ये क्रमशः लवण, इक्षु, सुरा, घृत, दही, दूध और जल के समुद्रों से घिरे हैं / इनमें जम्बूद्वीप की लम्बाई चौड़ाई एक लाख योजन है, भारतवर्ष इसी का एक भाग है / द्वीपों का वर्णन बड़ा रोचक है / मूल पुस्तक से देखना चाहिये / पश्चावनवाँ अध्याय 1 इस अध्याय में अनेक पर्वतों, नद, नदियों, जंगलों, उपवनों तथा सरोवरों का सुन्दर वर्णन किया गया है / मेरु पर्वत के उत्तर में जो पर्वतीय भूभाग है उसे इस पृथ्वी का स्वर्ग कहा गया है। अध्यायान्त में भारतवर्ष की स्थिति बता कर उसे कामभमि बताया गया है और कहा गया है कि भारतवर्ष ही इस / पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ भाग है क्योंकि यहीं से मनुष्य के उत्तर जीवन की तयारी . होती है और यहीं से मानव अपने कर्मों और साधनों से स्वर्ग तथा अपवर्गका लाभ कर सकता है तथा प्रमाद करने पर अपना अधःपतन भी कर सकता है। छप्पनवाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि जगत्कारण भगवान् नारायण के ध्रुवाधार नामक पद से प्रादुर्भूत हो त्रिपथगामिनी गङ्गा ने पहले सोम में प्रवेश किया फिर वहाँ से सूर्य की किरणों के सम्पर्क से संवर्धित हो वह मेरु पर्वत के शिखर पर गिरी, जहाँ से उनकी चार धाराये हो गई। जो धारा उस पर्वत के पूरब बही वह सीता, जो दक्षिण बही वह अलकनन्दा, जो उत्तर बही वह स्वरतु, तथा जो पश्चिम बही वह सोमा नाम से ख्यात हुई / भागीरथी गङ्गा, जो राजा भगीरथ के उद्योग से हिमालय से चलकर पूर्व समुद्र तक बहती है, वह गङ्गा की दूसरी धारा अलकनन्दा की एक शाखा है / अध्यायान्त में किम्पुरुष शादि देशों के सम्बन्ध में बहुत सी मनोरम बातें बतायी गयीं हैं / सत्तावनवाँ अध्याय इस अध्याय में भारतवर्ष का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया गया है उसके विभिन देशों, पर्वतों, जंगलों, और नद, नदियों का बड़ा रमणीय चित्रण किया गया है