________________ ( 66 ) अन्य पल्नियों ने भी अपनी-अपनी सन्तान पैदा किये / धर्म के विरोधी अधर्म के हिंसा नाम की एक ही पत्नी थी जिससे अन्त नामक पुत्र और निर्मृति नामक कन्या का जन्म हुअा। फिर इन दोनों से नरक और भय नाम के दो पुत्र तथा माया और वेदना नाम की दो कन्यायें पैदा हुई / इनमें भय और माया से मृत्यु तथा नरक और वेदना से दुःख का जन्म हुआ। दश इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, अहंकार और दुःसह ये चौदह अलक्ष्मी के पुत्र हैं / इनमें दुःसह बड़ा भयंकर है और वह अनाचारियों को दुःख देता है, इसके वयं और ग्राह्य स्थानों का वर्णन देखने योग्य तथा शिक्षाप्रद है। एक्यावनवाँ अध्याय इसमें कलि की कन्या निर्मादि से दु:सह का विवाह, उन दोनों के आठ पुत्र और पाठ कन्याओं का जन्म, उन से तथा उनकी सन्तानों से होने वाले विविध उपद्रव और जन-कष्ट तथा उनसे बचने के उपाय इन बातों का वर्णन विस्तार से किया गया है, जिसका ज्ञान बड़ा लाभप्रद है। बावनवाँ अध्याय इस अध्याय में रुद्र-सर्ग का वर्णन विस्तार से किया गया है और बताया गया है कि कल्प के आदि में ब्रह्मा ने ध्यान द्वारा रुद्र, भव, शर्व, ईशान, पशुपति, भीम, उग्र और महादेव नाम के आठ पुत्र पैदा किये जो क्रम से सूर्य, जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु, आकाश, दीक्षित ब्राह्मण और सोम के अधिष्ठाता हुये / मार्कण्डेय ऋषि स्वयं भी इसी सर्ग की सन्तति हैं जो मृकण्डु ऋषि की पत्नी मनस्विनी के गर्भ से पैदा हुये थे | अध्यायान्त में यह फलश्रति प्राप्त होती है कि जो इस अध्याय के विषयों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करता है वह अनपत्य नहीं होता। तिरपनवाँ अध्याय ___ इस अध्याय में स्वायम्भुव नामक श्राद्य मन्वन्तर का वर्णन किया गया है जिसकी चर्चा पहले आ चुकी है। स्वायम्भुव मनु के वंश की यह मर्यादा रही है कि उस वंश के राजा लोग ज्येष्ठ पुत्र के युवा होने पर उसे राज्यासन पर अभिषिक्त कर स्वयं तपस्या के निमित्त जंगल चले जाया करते थे / इस मर्यादा कि अनुसार, जिनके नाम से यह देश भारतवर्ष कहलाता है उन ऋषभपुत्र --PataHISAANESHAryalKansar