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________________ (88 ) अड़तीसवाँ अध्याय / आत्मा स्वभावतः सुख और दुःख से परे है। सुख और दुःख का सम्बन्ध जगत् के जड़ पदार्थों के साथ है, आत्मा तो अज्ञानवश उन पदार्थों में अपनी ममता मान कर उनके सुख दुःख का अपने में आरोप करता है / अलर्क के इस कथन का समर्थन करते हुए दत्तात्रेय ने बताया "सचमुच ममता ही मनुष्य के दुःख का निदान है / यह ममता मनुष्य के हृदय में एक महान् वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित है। अज्ञान ही ममत्व-वृक्ष का बीज है, अहङ्कार इसका अङ्कर है, और ममकार इसका तना है। घर-द्वार, खेत-बारी इसकी शाखायें हैं, धन-धान्य इसके पत्ते हैं, स्त्री-पुत्र आदि इसके पल्लव हैं, पुण्य पाप इसके पुष्प हैं, सुख दुःख इसके फल हैं, अनेक प्रकार की इच्छायें इस पर मड़रानेवाली भ्रमरावली है, असत्संसर्ग से इसका सेचन होता है / यह अनादि काल से लगा है और बराबर बढ़ रहा है | इसने मुक्ति के मार्ग को रोक रखा है / संसार की यात्रा में थक कर मनुष्य इसी की छाया में विश्राम लेता है। इसने मनुष्य को आत्मविस्मृत कर रखा है। सत्सङ्गरूपी पाषाण पर रगड़ कर तेज किये हुये ज्ञान-कुठार से जबतक इसका छेदन न होगा तबतक मुक्ति का मार्ग उद्घाटित न होगा / अतः सत्सङ्ग और विद्या के प्रयोग से इस वृक्ष को काटना मोक्षकाम मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है। यह सुन अलर्क ने कहा "भगवन् ! श्राप की कृपा से जड़ और चैतन्य के विवेक का श्रेष्ठ ज्ञान मुझे प्राप्त हो गया किन्तु मेरा चित्त विषयवासनाओं से अाक्रान्त होने के कारण इतना अधिक चञ्चल है कि वह ब्रह्म के साथ मेरी एकत्व-भावना को स्थिर नहीं होने देता अतः आप कृपा कर मुझे उस योग का उपदेश दें जिसके द्वारा मैं गुणातीत हो स्थायी रूप से ब्रह्म के साथ एकीभूत हो सकूँ"। इस अध्याय के तीसरे से लेकर सोलहवें तक के श्लोक कण्ठ रखने योग्य हैं / उनचालीसवाँ अध्याय अज्ञान के बन्धन से छुटकारा पाना ही मोक्ष है। और यही ब्रह्म के साथ एकीभाव और प्रकृति के गुणों से पृथक होना है। इसकी सिद्धि सम्यक ज्ञान से होती है। अतः मोक्षकाम के लिए योग का अम्यास नितान्त आवश्यक है / योगाभ्यास के लिए मन को वश में रखना आवश्यक है। मन को वश में रखने के लिए प्राण को वश में रखना आवश्यक है / और प्राण को वश में रखने के लिए प्राणायाम का सेवन आवश्यक है। प्राणायाम के तीन भेद होते हैं, लघु
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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