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________________ ( 73 ) शाह हरखावत का समय वि० सं० 1631 का है जिसको खरतरों ने वि० सं० 1167 का बतलाया हैं इस जाति की उत्पत्ति के लिये तो खरतरों ने एक गप्पों का खजाना ही खोल दिया है पर क्या करें विचारे ! यतियों की इस प्रकार गप्पों पर कोई भी बाठिया शाह हरखावत कवाड़ विश्वास ही नहीं करते हैं। . ८-बोत्थरा-वि० सं० 1013 में कोरंट गच्छाचार्य नन्नप्रभसूरि ने बाबु के आस पास विहार कर बहुत से राजपूतों को प्रतिबोध कर जैन बनाये जिसमें मुख्य पुरुष राव धांधल चौहन था धांधल के पुत्र सुरजन-सुरजन के सांगण और सांगण के पुत्र राव बोहत्थ हुआ बोहत्थ ने चन्द्रावती में एक जैन मंदिर बनाया और श्री शत्रुजय का विराटसंघ निकाल सर्व तीर्थों की यात्रा कर सोना की थाली और जनौउ की लेन दी जिसमें सवा करोड़ द्रव्य खर्च हुआ अत. बोहत्य की सन्तान से बोत्थरा कहलाये / - "खरतर यति रामलालजी ने महा० मुक्ता० पृष्ट 51 पर लिखा है कि जालौर का राजा सावंतसिंह देवाड़ा के दो राणियां थी एक का पुत्र सागर दूसरी का वीरमदेव, जालौर का राज वीरमदेव को मिला तब सागर अपनी माता को लेकर आबु अपना नाना राजा भीम पवार के पास चला गया, राजा भीम ने आबु का राज सागर को दे दिया। उस समय चित्तौड़ का राणा रत्नसिंह पर मालवा का बादशाह फौज लेकर आया राणा ने आबु से सागर को मदद के लिये वुलाया, सागर बादशाह को पराजय कर मालवा छीन लिया। बाद गुजरात के बादशाह ने आबु पर भाक्रमण किया सागर ने उसको हटा कर गुजरात भी छीन लिया / बाद देहली का बादशाह गौरीशाह चितोड़ पर चढ़ आया फिर चितोड़ वालों ने सागर को बुलाया, सागर ने वहाँ आकर आपस में समझौता करवा कर बादशाह से 22 लाख रुपये दंड के लेकर मालवा गुजरात वापिस दे दिया।
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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