SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 64 ) खुलासा तो मैंने "ओसवालोत्पत्ति विषयक शंका समाधान" नामक पुस्तक में विस्तृत रूप से कर दिया है। पर यहां तो इतना ही बतलाना है कि नाहरजी के लेखानुसार यदि ओसवंश की उत्पत्ति वि० सं० 500 और 1000 के बीच में हुई हो तो भी उस समय खरतरों का तो जन्म भी नहीं हुआ था। फिर वे किस आधार पर यह कह सकते हैं कि ओसवाल खरतराचार्यों ने बनाए / सच पूछा जाय तो यह केवल कल्पना मात्रऔर भोले भोंदू लोगों को बहका कर अपने जाल में फंसाने का हो मात्र प्रपञ्च है / आचार्य विजयानंदसूरि ( आत्मारामजी) अपने अज्ञान तिमिर भाष्कार नामक ग्रंथ में लिखते हैं कि. xxxवह रत्नप्रभसूरि / द्धादशंग-चतुदर्श पूर्व धर थे वोरात् 52 वर्षे इनको प्राचार्य पद मिला / इनके साथ 500 साधुओं का परिवार था तिस नगरी में श्री रत्नप्रभसूरि आये तिनों ने तिस नगरो में 125000 सवा लाख श्रावक जैन धर्मी करे तब तिनके वंश का उपकेश ऐसी संज्ञा पड़ी और नगर का नाम भी उस समय उपकेश पुर ही था उपकेशपटन और उपकेश वंश का ही नाम श्रोसा नगरी और प्रोसवंश-ओसवाल हुआ है मैंने कित नेक पुराने पट्टावली पुस्तकों में वीरात् 70 वर्षे उपकेशे श्रीवीर प्रतिष्ठा श्रीरत्नप्रभसूरि ने करी और ओसवाल भी प्रथम तिस रत्नप्रभसूरि ने
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy