________________ श्रीमान् नाहरजी स्वयं नागपुरिय तगगच्छ के श्रावक होते हुए भी खातरों के रंग में रंगे हुए हैं। यह बात आपकी लिखी हुई बाफनों को उत्पत्ति से विदित होती है। क्योंकि उपकेश वंश के इतने सबल प्रमाण उपलब्ध होने पर भी आप अनुमान लगाते हैं किन्तु बाफनों के खरतर होने में कोई भी ऐतिहासिक साधन नहीं मिलता है फिर भी उसे खींच तानकर आप खरतर बनाने की कोशिश की हैं। जब कि बाफना गोत्र रत्नप्रभसूरि स्थापित महाजन वंश के क्रमशः 18 गोत्रों में दूसरा गोत्र तथा शिलालेखों के आधार पर वह उपकेश गच्छीय स्वतः सिद्ध है। किन्तु नाहरजी ने उसे जिनदत्त सूरि प्रति बोधित करार देने में आज आकाश पाताल एक कर दिया है / पर दुःख इस बात का है कि नाहरजी ने बाफनों की उत्पत्ति के विषय में न तो इतिहास की ओर ध्यान दिया है और न अपनी बात को प्रमाणत करने को कोई प्रमाण ही दिया है। जैसे खरतर यतियों ने बाफनों की उत्पत्ति का कल्पित ढांचा खड़ा किया था, ठीक उसी का अनुसरण कर आपने भी लिख दिया कि बाफनों के प्रतिबोधक जिनदत्तसूरि हैं। किन्तु इस विषय में मेरी लिखी “जैन जाति निर्णय" नामक पुस्तक देखनी चाहिये / क्योकिं बाफना रत्नप्रभसूरि द्वारा ही प्रति बोधित हुए हैं। ____ उपकेशगच्छ में वीरात् 70 वर्ष से 1000 वर्षों में रत्नप्रभसूरि नाम के 6 आचार्य हुए हैं। शायद नाहरजी का ख्याल वि. सं० 500 वर्ष पश्चात् और 1000 वर्षों पूर्व में हुए किसी रनप्रभसूरि ने उपकेशपुर ( ओसियां ) में ओसर्वस की स्थापना करने का होगा जैसा आपने ऊपर लिखा है। खैर ! इस विषय का