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________________ ६-विक्रम की आठवीं शताब्दी का जिक्र है कि भिन्नमाल नगर का राजा भाण उपकेशपुर का रत्नाशाह ओसवाल की पुत्री के में स्पष्ट रूप से मिलता है। - ७-श्रीमान् बाबू पूर्णचन्दजी नाहर कलकत्ता वालों ने अपने "प्राचीन शिलालेख संग्रह खंड तीसरा" के पृष्ठ 25 पर लिखा है कि: "इतना तो निर्विवाद कहा जा सकता है कि ओसवाल में श्रोस शब्द ही प्रधान है। श्रोस शब्द भी उएश शब्द का रूपान्तर है और उएश, उपकेश, का प्राकृत हैxxx इसी प्रकार मारवाड़ के अन्तर्गत "ओसियां" नामक स्थान भी उपकेश नगर का रूपान्तर हैxxxx जैनाचार्य रत्नप्रभ सूरिजी ने वहाँ के राजपूतों को जीव हिंसा छुड़ा कर उन लोगों को दीक्षित करने के पश्चात् वे राजपूत लोग उपकेश अर्थात् प्रोसवाल नाम से प्रसिद्ध हुए।" . श्रीमान नाहरजी ऐतिहासिक साधनों का अभाव बतलाते हुए इस अनुमान पर आए हैं किः "xxxसंभव है कि वि०सं०५०० के पश्चात् और वि० सं० 1000 के पूर्व किसी समय उपकेश (ोसवाल) ज्ञाति की उत्पत्ति हुई होगी?
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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