________________ ( 41 ) प्रतापजी तथा हरखराजजी भणशाली के पास अपनी उत्पत्ति का खुर्शीनामा है जिसमें अपनी उत्पत्ति वि. सं० 1132 में हुई लिखा है, भणशाली जाति के लिये श्रीमान् पूर्णचन्द्रजी नाहर बीकानेर के खरतरोपाध्यय जयसागरजी के प्राचीनलेखानुसार लिखते हैं कि वि. सं. 1091 में भणशाली जाति हुई है / जब जिनदत्त सूरि का जन्म ही वि. सं. 1132 में हुआ है फिर समझ में नहीं आता है कि आधुनिक खरतरा, दादाजी पर इस प्रकार व्यर्थ बोमा क्यों लाद रहे हैं। करमावसादि ग्रामों के भणसाली तपागच्छ के कहलाते हैं। २८-चरडिया, लोढ़ा-यह नागपुरिया तपागच्छोपासक जाति हैं। ___२६-कोठारी, यह वायट गर्छ य आचार्य बप्पभट्ट सूरि ने जो जिनदत्त सूरि के जन्म के करीब पुनातीन सौ वर्ष पूर्व हुए हैं। उन्होंने ग्वालियर के राजा आम को जैन बनाया उनकी सन्तान कोठारी कहलाई। ३०-झाबक, नागपुरिया तपागच्छोपासक श्रावक हैं। ३१-धाडिवाल, यह कोरंटगच्छोपासक श्रावक हैं। ३२-दुधेड़िया, यह कन्दरसागच्छ प्रतिबोधित हैं। ३५-कटारिया, सेठिया-और बड़ेरा ये आंचलगच्छीय श्रावक हैं। . ३६-दुगड, वह उपकेशगच्छीय श्रावक और भाचार्य रत्नप्रभसूरि प्रतिबाधित हैं।