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________________ (40) - १७-खजांनची, यह मिन्नी गोत्र की शाखा है / इसके प्रतिबोधक कोरंटगच्छीय आचार्य नन्नप्रभसूरि हैं। १८-कांकरिया, यह चरड़ गोत्र की शाखा है। इसके प्रतिबोधक आचार्य श्री रत्नप्रभसरि हैं / जो वीरात् 70 वर्ष १६-लुनाबत भी स्वतन्त्र गोत्र नहीं पर आर्य गोत्र की शाखा है / इसके स्थापक वि. सं० 684 में उपकेश गच्छाचार्य देवगुप्रसूरि हुए हैं। २०-चोपड़, यह कुंकम गौत्र की शाखा है। इनको उपकेश गच्छाचार्य देवगुप्रसूरि ने वि. सं. 885 में बनाया है / २१-छाजेड़, यह वि. सं. 942 में उपकेश गच्छाचार्य श्री सिद्धसूरि ने बनाया। २२-संचेति, यह वि. सं० 400 वर्ष पूर्व आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित हुआ।. २३-नाहर, इसका गच्छ तपागच्छ है जिसको हम ऊपर लिख आये हैं। २४-नवलखा. यह नागपुरिया तपागच्छाचार्य प्रतिबोधत श्रावक हैं। ___२५-डागा, यह नाणावाल गच्छाचार्य प्रतिबोधित श्रावक हैं। २६-भणशाली, जोधपुर तवारीख में इस जाति की उत्पत्ति समय वि. सं० 1112 का लिखा है / तब मुताजी लिछमी
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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