________________ ( 42 ) ३७-भंडारी, यह सांडेरावगच्छोपासक हैं। इनके प्रतिबोधक वि. सं० 1039 में आचार्य यशोभद्र सूरि हुए हैं। - ३८-श्री श्रीमाल, उपकेश गच्छोपासक अर्थात् 18 गोत्रों में 8 वाँ गोत्र है। ....४४-भूणिया, शेखावत, बलाई, महेता, जिन्नाणी, सुखाणी, और जालोरी ये कोई स्वतन्त्र जातियें नहीं पर किन्ही मूल गोत्रों की शाखाएँ हैं। यहां पर मैंने ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से जिन जातियों का जो गच्छ लिखा है वह केवल नामोल्लेख ही किया है / क्योंकि मैंने "जैन जाति महोदय" के द्वितीय खण्ड में उपर्युक्त जातियों की उत्पत्ति, वंशावली, और धर्मकृत्य विस्तार से लिखने का निर्णय कर लिया है और इस विषय का सामग्री भी गहरी तादाद में मिल गई है / इतना ही क्यों पर मैंने कई सर्वमान्य शिलालेख भी संग्रह किये हैं / अतः निःसंकोच यह कह सकते हैं कि मेरा उपर्युक्त कथन खरतरों की भांति केवल कपोल कल्पित नहीं है। विज्ञ पाठकों को सोचना चाहिये कि खरतरों ने जिन 44 गोत्रों को जिनदत्तसूरि के बनाये लिखे हैं, वे तमाम जिनदत्तसूरि के जन्म के पूर्व सैकड़ों वर्षों से बने हुये थे / शायद इन गोत्रजातियों वालों को भगवान महावीर के पांच कल्याणक की मान्यता को बदला कर छः कल्याणक मना कर, या इन गोत्रोंवाली स्त्रियों को जिन पजा छुड़ा कर अपने श्रावक मान लिये हों तो बात दूसरी है। जैसे कि आधुनिक हूँ ढियों ने मूर्तिपूजा छुड़ा