________________ ( 22 ) इस प्रकारः-२२, 53, 14, 16, 17, 18, 17, 22, 30, 44, 85, 20, 29, 19, 20, 21, 19, 16, 9, 7, 4, 4 एवं कुल 22 मूल गोत्रों की 526 शाखाओं का तो पता वंशावलियों से मिलता है। आचार्य रत्नप्रभसूरि के पश्चात् उनकी सन्तानः-जैसे यक्षदेवसूरि, कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरिने भी सिन्ध, सोरठ लाट, मेदपाट, पंजाब आदि प्रदेशों में लाखों नये जैन बनाये थे, किन्तु वे किस गोत्र या जाति से संबोधित किये जाते होंगे ? इसको जानने का कोई भी साधन इस समय मेरे पास उपस्थित नहीं है / पर जैनों में 74 // शाह हुए हैं और उनमें कई शाह नूतन गच्छों के पूर्व मी हुए हैं और उपयुक्त 22 गोत्रो से उनके गोत्र पृथक हैं / अतएव हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि इन 22 गोत्रों के अतिरिक्त और गोत्र भी हुए हैं। ___ विक्रम की सातवीं शताब्दी से लगा कर विक्रम की बारहवीं शताब्दी तक उपकेश गच्छाचार्यों ने अजैनों को जैन बनाये, उनके भी थोड़े बहुत गोत्रों का पता वंशावलियों आदि साधनों से लगा है। जिनको भी हम यहां दर्ज कर देते हैं:___आचार्य रत्नप्रभसूरि के पश्चात् उपकेश गच्छाचार्यों के प्रतिबोधित श्रावकों के गोत्र / ___ मूल गोत्र आर्य-(वि० सं० 684 ) आर्य सिन्धुड़े| लुणावत | संधी | लोवाणा आदि