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________________ ( 23 ) (2) मूल गोत्र छाजेड़-(वि० सं० 942 ) छाजेड़ | चावा भाखरिया | रूपावत आदि नखा / संघवी | नगावत (३)मत्र गोत्र राखेचा-(वि० सं० 878) राखेचा पावेचा धूपिया पुङ्गलिया | धमांणी | कालाणी आदि / (4) मल गोत्र काग-(वि० सं० 1011) काग |जालीवाल | कुकड़ | निशानिया| भंगिया आदि (5) मूल गोत्र गरुड़-(वि० सं० 1043) गरुड़ | सोनी | संघी पटवा घोड़ावत | भूतड़ा | खजानची | फलोदिया आदि | खजानचा (6) मूल गोत्र सालेचा- (वि० सं० 912) सालेचा | सोनावत | भरा आदि बोहरा गान्धी पाटणिया / जोधावत / कोठारी हाथी, दानेसरा, (7) मूल गोत्र वागरेचा-(वि० सं० 1009) बागरेचा संधी सोड़ा पाडु सोनी / जालोरी / नारेलिया / (8) मूल गोत्र कुंकम-(वि० सं० 885) कुकुम / (कुकुम)गणधर सोनाणिया चोपड़ा | जाबलिया धुपिया | वट वटा संधी मालवा | मिठा
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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