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श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो.
गनि होत्र ० ॥ ॥ धर्म
ध्यान
लहे । जाणे धर्म पुराण || गुण० ॥ ५ ॥ आप अनेरा तारवा । होस्ये समरथ जेय ॥ अन्न एह लसु आपस्युं । इम विजयघोष कय ॥ गुण ॥ ६ ॥ एहनी परे तुं नवि लदे | जो जाणे तो दाख ॥ जयघोषे इम पूछियो । विप्र पूढे जन साख ॥ गुण० ॥७॥ जगवन हुं जाएं नही । जाख्यो एह विचार ॥ कर्म ईंधणे । आहुति जावन सार ॥ नियें करी । अगनि होत्र ए होइ ॥ खय ईहे जे कर्मनो । ते इह अघी जोइ ॥ गुण० ॥ए॥ नत्रनुं मुख चंद्रमा, धर्म मुख कूपन जिणंद | आप अनेरा तारस्ये । जसु मन शील आणंद ॥ गुण० ॥ १० ॥ श्रमण को समता गुणें । शीलें ब्राह्मण जाए ॥ ज्ञानें मुनि तापस तपे । ए बे साची वाण ॥ गुण० ॥ ११ ॥ अनि संग सोवन जिसो । ढंके मलनी वात ॥ पाप तजे तप दरी । व्रत पाले रंगे रात ॥ गुण० ॥ १२॥ कामजोग ठीपे नहीं । पुंगरीक परे साध ॥ ए पर तसु सविदाखवी । जे करि हुवे निरबाध ॥ गुण० ॥
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