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________________ श्री उत्तराध्ययनमूत्रनी सज्झायो. ॥ १३ ॥ हरष्यो ब्राह्मण इम सुणी | वंदी ये आहार ॥ अन्न अरथ मुजनें नही । ऋषि कहे ल्यो व्रत जार ॥ गुण० ॥१४॥ इम संजलि चारित्र लियुं । बेवश् शिवपुर जाई || श्रीब्रह्म नामि सेवक सदा । वलि वलि तसु गुण गाइ ॥ गुण० ॥ १५ ॥ ॥ इति याज्ञीय सज्झाय ॥ २५ ॥ श्री साधु ममाचारो सज्जाय २६ ४७ 1 ( राग - सोरठ. बलभद्र ले आवो नीरा-ए देशीमां ) समाचारी साधुनी बोली सुं उलट आणि । मुषिवर बहु मुगतें गया । जे आचरण प्रमाणि ॥ १॥ याव सही जातां कीजे । सिही रहतां बोलीजे ॥ पूआपण कामें । परिपूण परने नामे ॥ २ ॥ जिह साधु निमंत्रण दीजे । तिह बंद नाम कहीजे ॥ इहाकारी करो ए स्वामी । इम बोलावीजे स्वामी ॥ ३ ॥ मिलाकरुं पापनो । तहति सुगुरु आदेश ॥ गुरु पूजा काजे करे | अन्नुद्वाण विशेष ॥ ४ ॥ ज्ञानादिक काजे रहिजे । उपसंपद तेहने कीजे ॥ ए
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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