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________________ श्री सोल सतियोनी सज्झायो. १७३ पेट सहित ते देखी नारी ॥ काढे सासू घर थकी। पहुती वनह मजारि शी०॥ ७॥ पाले सतीय शील सु हामणुं । हनुमंत सुत तिहां थाय ॥ सूरिजकेते देखी जाणेजी। निज नगरे लेई जाय शी० ॥ ॥ पवनंजय पण जीती आवीयो । सती न दीगी जाम । करवा लाग्यो आपहत्या घण।। मित्र निवारे ताम शी० ॥॥॥पवनंजय मित्र जोतो सतीयने । सूरिज केतु आवास । पामि तिहाथी लेई निज पुरे । आव्यो मन उल्हास शी० ॥१०॥ बहु परिविलसी राज्य सोहामणु । साधी संयम काज ॥ स्वर्गे पहुती चोथी अंजना । पत्नणे मुनि मेघराज शी० ॥ ११ ॥ शील विषमहासती नर्मदा सुंदरीनी सजाय । ( जिन चउतीसेंरे अतिशय श्रुत भण्या-ए देशी) नरमदा कांठे नर्मदपुर वसे। सहदेव श्रावक गुण करि उन्हसे । तसु घर बेटि नर्मदा सुंदरी । रूप लावण्य शील श्रावक गुण जरी-धन जयों आवे महेसर दत्त नाणेजो मामा घरे। गुण रंजी श्रावक होय
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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