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________________ १७२ श्री सोल सतियोनी सज्झायो. शील विषे महासती अंजनासुंदरीनी सजाय ४ (विनय करीजेरे०-ए देशी.) गिरि वैताढये प्रल्हादनपुरे । प्रल्हादन तिहां राय ॥ राणी रूमी तसु पदमावती । पवनंजय सुत थाय॥१॥शील सदा फल साजण सेवीये । जग जस पसरे जेम ॥ जिणपरिपाले आगे अंजना शील धों तनि तेम ॥ सापशील आंकणी॥अंजनकेते राये निज बेटी। पवनंजयने दीध॥शील सोनागिणि अंजना सुंदरी । जुगता जुगतुं कीध शी० ॥३॥ एक दिन पवनंजय निज मित्रस्युं । कन्या जोवा जाय ॥ देवदत्त कुंअर गुण सांजलि करी । क्रोधे पवन जराय शी॥४॥ मन पाखे ते कन्या परण्यो । मी बार वरीस ॥ रावण साथे चाल्यो कटके । जननी दीये आसीस शी० ॥ ५॥ घरमे बेगी रे अंजना। पवन पंखी वियोग ॥ देखी आव्यो राग जयों । राते मख्यो बिहु संयोग शी० ॥ ६॥ कटके पहुतो माता विणु कहीये।
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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