________________ च सर्वेषाम् // 19 // सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि देवस्य // 20 // योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः // 21 // विपरीतं शुभस्य // 22 // दर्शनविशद्धिविनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्ति चार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्य-कापरिहाणिर्मार्गप्रभावना प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकृत्त्वस्य // 23 // परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणाच्छादनोद्भावने च चोत्तरस्य // 25 // विघ्नकरणमन्तरायस्य // 23 // // इति षष्ठोऽध्यायः // 6 // सप्तमोऽध्यायः हिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् भावनाः पञ्च पञ्च // 3 // हिंसादिष्विहामुत्र चापायावद्यदर्शनम् // 4 // दुःखमेव वा // 5 //