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________________ मेरी दृष्टि और सबके लिए उपयोगी हैं । भगवान् महावीर की स्मृति का, में, यह सर्वश्रेष्ठ माध्यम है । अर्हत् का ध्यान कर अर्हत् बनना या अर्हत् बनकर अर्हत् के स्वरूप को पहचानना ही साधना का रहस्य है । साधना के क्षेत्र में शरीर, श्वास, वाणी और मन सबको साधना जरूरी है । इनकी साधना के कुछ मर्म हैं, जिनका प्रस्तुत पुस्तक में उद्घाटन किया गया है । वि० सं० २०२८ में जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा आयोजित साधनाशिविर में दिये गये वक्तव्य तथा कुछ निबन्ध भी इसमें संकलित हैं । आचार्यश्री तुलसी की सहज प्रेरणा इस दिशा में रही और वह फलवती बनी । अभी इस दिशा में बहुत करणीय है । पथ बहुत लम्बा है और बहुत चलना है । किन्तु पथ और जंघाबल प्राप्त हो तो गंतव्य दूर नहीं हो सकता । मुझे विश्वास है कि एक दिन निश्चित ही हम ध्यान के उस बिन्दु पर पहुंच जायेंगे, जिस पर भगवान् महावीर और उनके साधु अवस्थित थे । जैन ध्यान पद्धति के बारे में भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार चल रहे हैं । कुछ लोग मानते हैं—– जैनों की अपनी कोई मौलिक ध्यान पद्धति नहीं रही । यह मान्यता इसलिए बन जाती है कि वर्तमान में जैन परम्परा में यत्किंचिद् ध्यान का प्रयोग चल रहा है, वह उत्तरकालीन ध्यान पद्धतियों का प्रतिफलन है । गत वर्ष (सन् १९७४) दिल्ली में साहू शान्तिप्रसादजी जैन आचार्यश्री तुलसी के पास आए । मैं भी वहीं उपस्थित था । उक्त विषय पर चर्चा चली और जैन ध्यान -पद्धति का ऐतिहासिक विश्लेषण करने के लिए चार गोष्ठियों के आयोजन का निश्चय हुआ । आचार्यश्री के सान्निध्य में संपन्न उन गोष्ठियों के वक्तव्य भी इस संकलन में संकलित हैं । भाषणों का संकलन कर उन्हें प्रस्तुत पुस्तक में संकलित निबन्धों और पुस्तक का रूप मुनि दुलहराजजी ने दिया है । इनके सम्पादन का श्रम मेरे सारे श्रम को कम कर देता है । इस कार्य के लिए उन्हें साधुवाद देना पर्याप्त नहीं होगा । आचार्यश्री की 'मनोनुशासनम्' और मेरी पुस्तक 'चेतना का ऊर्ध्वारोहण' के पठन से भगवान् महावीर की साधना के जिज्ञासु पाठकों में जो रुचि जागृत हुई, उसी के पूर्तिक्रम में प्रस्तुत पुस्तक का योग होगा । ग्रीन हाउस, सी-स्कीम, युवाचार्य महाप्रज्ञ जयपुर २ अक्तूबर, १९७५ the
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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