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________________ श्वास- संवर का बहुत महत्त्व है | प्रश्न हुआ कि रोग क्या है ? दिया - धातु वैषम्य ही रोग है । आरोग्य क्या है ? और धातु वैषम्य है रोग । इसका उत्तर हैएसिड बनेगा, कार्बन लिए श्वास को तेज अब प्रश्न रहा कि धातु का वैषम्य क्यों होता है ? शरीर की प्रवृत्ति । प्रवृत्ति जितनी होगी, उतना ही ई-ऑक्साइड बनेगा और उतना ही उसे निकालने के होना पड़ेना । आप निवृत्ति की स्थिति में चले जाइए । एसिड कम बनेगा, कार्बन डाई ऑक्साइड कम बनेगा और उसे निकालने के लिए उतना ही श्वास को कम प्रयत्न करना पड़ेगा । जो लोग ध्यान करते हैं, घंटों तक बैठ जाते हैं, श्वास को बिलकुल मंद कर देते हैं । शरीर शास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो जब पूरी मात्रा में श्वास नहीं जाता है तो कार्बन कम निकलता है । इसलिए वह ठीक नहीं होना चाहिए । किन्तु वहां वह ठीक है और इसलिए है कि जब शरीर शान्त रहेगा तो कार्बन की मात्रा कम बढ़ेगी । प्रवृत्ति शान्त रहेगी । आंतरिक प्रवृत्तियां भी कम रहेंगी। आवेग कम रहेगा तो कार्बन को निकालने के लिए कम श्वास की जरूरत होगी और थोड़ी ऑक्सीजन से पूरा काम हो जाएगा और रक्त का दोष भी समाप्त हो जाएगा । इन सारी दृष्टियों से हम देखें । शरीर शास्त्र की दृष्टि से, मानस शास्त्र की दृष्टि से और आत्मज्ञान की दृष्टि से; इन सारी दृष्टियों से श्वास को शांत करना, मंद करना, सूक्ष्म करना बहुत लाभदायक है । यही है श्वास का संवर । यदि हम श्वास के संवर की बात को ठीक से समझ से लेते हैं तो मन को शांत रखने, शरीर को शान्त और तनाव मुक्त रखने की बात को समझ लेते हैं । यदि हम श्वास को शान्त करने की बात को नहीं समझते हैं तो तनाव मुक्ति की बात और आवेग मुक्ति की बात की बात को भी नहीं सम ते हैं । आवेग मुक्ति की बात और कषाय-मुक्ति की बात को भी समझने के लिए यह अनिवार्य है कि श्वास-मुक्ति की बात को भी हम समझें । और श्वास- मुक्ति की बात समझने वाले को यह समझना जरूरी है कि वह आवेग मुक्ति की बात भी समझे । साधक चत्मकारों की स्थिति में चले जाते हैं । घड़े को भी ऊपर उठा देते हैं, बड़ी-बड़ी शिलाओं को भी ऊपर उठा देते हैं, और कई बातें ऐसी दिखा देते हैं, स्वयं भी ऊपर उठ जाते हैं । राम ठाकुर था एक रसोइया । आसन करते-करते वह छत तक ऊपर उठ जाता था। बड़ा विचित्र था । ७५ महर्षि चरक ने उत्तर धातु-साम्य है आरोग्य
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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