SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ महावीर की साधना का रहस्य ये दो मुद्राएं हमारे सामने स्पष्ट हैं-एक शान्त मुद्रा और एक आवेश की मुद्रा । आप शान्त मुद्रा का अध्ययन कीजिए । शान्त मुद्रा में शरीर तनाव-मुक्त होगा, श्वास शांत होगा और मनोभाव भी शान्त होगा। दूसरी ओर अशान्त मुद्रा का अध्ययन कीजिए । अशान्त मुद्रा में श्वास तीव्र होगा, मनोभाव शिथिल होंगे और शरीर में तनाव आ जाएगा। ये दोनों स्थितियां हैं और इन दोनों स्थितियों में जो शान्त रहता है, कषाय जिसके शान्त रहते हैं, उसके श्वास का संयम हो जाता है। दूसरी स्थिति में चलें-जो व्यक्ति अधिक-से-अधिक श्वास को शान्त रखने का प्रयत्न करता है, उसके कषाय अपने आप ही शान्त हो जाते हैं । आप दोनों में से किसी एक को भी पकड़ लीजिए । चाहे इसको पकड़ें कि मैं बिलकुल ही कषाय को शान्त रखूगा तो आप श्वास का संयम अपने आप ही कर लेंगे। चाहे आप श्वास के संयम को पकड़ लीजिए कि मैं अधिक-से-अधिक अपने मन को श्वास पर केन्द्रित रखेंगा, श्वास को शान्त रखूगा तो कषाय अपने आप ही क्षीण होते चले जाएंगे। श्वास-संवर का मतलब है, कषाय का भी संवर । श्वास-संवर का मतलब है, मनोभावों में शान्ति का प्रकटीकरण । श्वास-संवर का मतलब है शरीर को तनाव से मुक्त रखना । इन सारी दृष्टियों से हम देखें । तो मालूम होगा कि श्वास-संवर का बहुत बड़ा महत्त्व है और यह हमारी साधना-पद्धति का बहुत बड़ा अंग है। ___ अब प्रश्न होता है कि श्वास का संवर कैसे होगा? बहुत सीधी प्रक्रिया है कायोत्सर्ग की। आप कायोत्सर्ग करें, श्वास का संयम होना शुरू हो जाएगा। क्योंकि जैसे ही काया की स्थिरता होगी, काया के प्रयत्न कम होंगे तो आपका श्वास अपने-आप ही शान्त हो जाएगा। इसका एक कारण है, और वह शरीर-शास्त्रीय कारण है । हमारी जितनी भी प्रवृत्ति होती है, फिर चाहे वह छोटी ही प्रवृत्ति क्यों न हो, एसिड उत्पन्न करती है। यह आज के शरीर-शास्त्र का सर्वमान्य सिद्धांत है । अष्टावक्र गीता में एक श्लोक पढ़ा था, जो मुझे बहुत सुन्दर लगा । उसमें उन्होंने बतलाया था—प्रवृत्ति का नाम ही है 'विषम' । और निवृत्ति का नाम है 'सम' । उन्होंने सम और विषम की व्याख्या की। प्रवृत्ति का मतलब विषमता और निवृत्ति का मतलब समता । जैसे ही निवृत्ति होगी, वैसे ही हमारे शरीर की सारी धातुएं सम हो जाएंगी। धातुएं सम होंगी तो एसिड की मात्रा बिलकुल कम हो जाएगी। प्रवृत्ति बढ़ेगी तो विषमता बढ़ जाएगी। एसिड की मात्रा बढ़ जाएगी। धातु-साम्य
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy