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________________ महावीर की साधना का रहस्य लेकर चलते हैं, फिर प्राण, अपान और चक्रों की बात क्यों करते हैं ? ये प्रश्न बार-बार आते रहते हैं । मैं आपसे कहना चाहता हूं कि भगवान् महावीर ने ने जहां उपवास करने का विधान किया, संवर करने का विधान किया, वहां इन सारी बातों पर भी ध्यान नहीं दिया क्या ? आप देखें कि भगवान् की मुद्रा का वर्णन आता है कि उनका शरीर था बिलकुल सीधा और सरल । सीधा और सरल शरीर था, टेढ़ा-मेढ़ा नहीं था । एक पुद्गल पर उनकी दृष्टि टिकी रहती थी। इसका मतलब क्या है ? एक पुद्गल पर दृष्टि टिकाने का मतलब है श्वास पर संयम करना । आप प्रयोग करके देख लीजिए। जैसे ही आपने किसी चीज पर दृष्टि टिकाई, अपने-आप ही श्वास मंद हो जाएगा। अगर श्वास मंद नहीं होता है, श्वास शांत नहीं होता है तो एक पुद्गल पर आपकी दृष्टि टिकी नहीं रह सकती। - यदि किसी व्यक्ति ने पादांगुष्ठासन का अभ्यास किया हो तो वह जानता है कि यह आसन तभी हो सकता है जबकि हमारा श्वास मंद हो। अगर श्वास मंद नहीं होगा तो पादांगुष्ठासन नहीं होगा। किसी बिन्दु पर ध्यान टिका तो तत्काल पादांगुष्ठासन हो जाएगा। यदि किसी बिन्दु पर ध्यान एकत्र नहीं हुआ तो आपका पादांगुष्ठासन नहीं होगा। यह कसौटी है उसकी। ____ आपने कभी ताड़ासन किया होगा ? ऐसे तो ताड़ासन कर सकते हैं किंतु जैसे ही आपका ध्यान ऊपर की उंगलियों पर केन्द्रित हुआ, आप ताड़ासन की मुद्रा में रह जाएंगे । जैसे ही आपका ध्यान हटा, ताड़ासन की मुद्रा समाप्त हो जायेगी। दोनों एक-साथ चलते हैं। __आप देखिए, एक आसन पर पांच-दस घंटे वे ही व्यक्ति बैठ सकते हैं जिन्होंने प्राणवायु पर, श्वास पर नियन्त्रण पा लिया है । प्राणवायु पर जिनका नियन्त्रण नहीं हुआ, श्वास पर जिनका नियन्त्रण नहीं हुआ, वे आधा घंटा के बाद ही यह शिकायत करने लग जाते हैं कि कमर टूटने लगी है। घुटने दुःखने लगे हैं। ऐसा क्यों होता है ? कमर क्यों टूटने लगती है ? घुटने क्यों दुःखने लगते हैं ? इसीलिए कि प्राण पर उनका नियन्त्रण नहीं है और वे श्वास के साथ अपने शरीर का सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं। ___ जो व्यक्ति लम्बे समय तक ध्यान में बैठना चाहते हैं, उन्हें श्वास पर नियन्त्रण पाना जरूरी है । आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा-"आसनविजय, निद्राविजय और आहार-विजय-ये महावीर की साधना के मूल हैं।" आसन की विजय होने से श्वास की विजय अपने आप ही हो जाती है । श्वास की विजय
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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