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________________ श्वास- संवर है प्राण और अपान और एक ओर है मन को साधने की बात । सचमुच यह भटकानेवाली बात है । आप क्या चाहेंगे ? क्या मन को साधना चाहेंगे या प्राण और अपान को साधना चाहेंगे ? किन्तु मैं देखता हूं कि यह पकड़ का अन्तर है । जो व्यक्ति मन को साधना चाहेगा और जैसे ही ऐसा प्रयत्न करेगा, अपने आप ही प्राण और अपान उसके साथ सध जायेंगे । प्राण और अपान का संयम होना शुरू हो जाएगा । अगर मन पर आपका प्रभुत्व स्थापित होता है, मन को आप स्वीकार करते हैं या मन की वास्तविक सत्ता को नकारते हैं तो प्राण और अपान अपने-आप ही सध जायेंगे । यदि प्राण और अपान को साधना शुरू करते हैं तो मन अपने-आप ही विलीन होना शुरू हो जाएगा । यह पद्धति का स्वीकार, मुख्यता और गौणता का स्वीकार मात्र रहा । ७१ ज्ञानयोग में सारा भार दिया गया है— आत्मज्ञान को । आत्मा को जानो और आत्मा को देखो । यदि आप आत्मा को जानने का प्रयत्न करते हैं, तो क्या मन को पकड़ छूट जाएगी ? क्या प्राण और अपान की बात उससे दूर हट जाएगी ? ऐसा नहीं होगा । जैसे ही आपने आत्मा की ओर ध्यान केन्द्रित किया, मन और प्राण — दोनों अपने-आप ही विलीन होते चले जाएंगे । भक्तियोग में और क्या होता है ? चैतन्य महाप्रभु का-सा भावावेश प्रकट होता है । इसकी विस्मृति हो जाती है कि उस विस्मृति में प्राण शांत हो जाता है, मन शांत हो जाता है और स्मृति शांत हो जाती । इन सारी पद्धतियों के मूल में एक बात काम कर रही है, वह यह है कि हम किसी एक बात को ठीक से पकड़ लें । उस बात में अपनी भावना को लगा दें । आसपास के परिपार्श्व को भी समझें । जब एक बात को ठीक पकड़ लेते हैं, और आसपास के परिकर को समझ लेते हैं तो फिर हमारी कोई उझलन नहीं होती । उपवास करने वाला उसके फलितार्थ को नहीं जानता । उपवास करने से निर्जरा होती है, यह बात ठीक है और यह सूत्र भी हमें मिला है । किन्तु उपवास करने का शरीर पर क्या असर होता है ? उपवास का हमारी इन्द्रियों पर क्या असर होता है ? - इन सारी बातों को अगर ठीक विस्तार से समझ लें तो हठयोग की बात समझ में आ जायेगी, राजयोग की बात समझ में आ जायेगी और ज्ञानयोग की बात भी समझ में आ जायेगी । हम बहुत बार सोचते रहते हैं कि भगवान् महावीर के योग की पद्धति क्या है ? जैनों की साधना-पद्धति क्या है ? हम लोग संवर और निर्जरा को
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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