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________________ महावीर की साधना का रहस्य मुख्य साधन है आत्म-दर्शन | यह स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर के साथ जुड़ा हुआ है एक धागे के द्वारा, एक सूत्र के द्वारा और वह सूत्र है मोह, राग और द्वेष का । स्थूल शरीर के बीच एक धागा है— मोह का, राग और द्वेष का । वह धागा न हो तो यह शरीर बंधा नहीं रह सकता, पोषक नहीं हो सकता । जब तक वह धागा नहीं टूटता, वह धागा पतला नहीं होता, क्षीण नहीं होता, तब तक यह स्थिरता या शान्ति प्राप्त नहीं होती । शरीर की स्थिरता हुए बिना मन और वाणी की स्थिरता प्राप्त नहीं हो सकती । ५२ आत्म-दर्शन से क्या होता है ? वह धागा पतला हो जाता है । उसकी पकड़ कमजोर हो जाती है । मोह का धागा, राग और द्वेष का धागा जो स्थूल शरीर को पकड़े हुए है, उसकी पकड़ कम हो जाती है । आचार्य कुन्दकुन्द ने बहुत सुन्दर बात कही है जो जाणइ अरहंते, सहि सव्वपज्जवेहि । सो जाणइ अप्पाणं, मोहो तस्स जाति लयं ॥ जो व्यक्ति अर्हत् को जानता है, वीतराग को जानता है, वह अपनी आत्मा को जानता है । क्योंकि आत्मा और अर्हत् — ये दो नहीं हैं । आत्मा और अर्हत में कोई अन्तर नहीं है । कोई भेद नहीं है, वही अपनी आत्मा है । और जो अपनी आत्मा है, वही अर्हत् है । अर्हत् कोई एक व्यक्ति हो सकता है, यह महावीर ने नहीं कहा। हर आत्मा अर्हत् है । किन्तु वह मोह का धागा टूटने पर है । जो इस बात को देखता है, अर्हत् को जानता है, वह अपनी आत्मा को देखता है । और जो अर्हत् को देखता है, उसका मोह विच्छिन्न हो जाता है । यह मोह - विलय की प्रक्रिया, यह राग और द्वेष के धागे को तोड़ने की प्रक्रिया, उसे क्षीण करने की प्रक्रिया, बहुत सुन्दर प्रक्रिया है । जो व्यक्ति मोह को कम करना चाहता है, जो व्यक्ति अपने अस्तित्व को प्रकट करना चाहता है, उद्दीप्त करना चाहता है, उसे अर्हत् का ध्यान करना होगा अर्थात् अपनी आत्मा का ध्यान करना होगा । अपनी आत्मा के ध्यान करने का मतलब है अर्हत् का ध्यान करना या अर्हत् का ध्यान करने का मतलब है अपनी आत्मा का ध्यान करना । महावीर निरन्तर अपनी आत्मा का ध्यान कर रहे थे । उनसे पूछा गया कि संवर क्या है ? संयम क्या है ? भगवान् ने कहा, 'आया सवरे, आया संयमे, आया पच्चक्खाणे ।' आत्मा ही संवर है, आत्मा ही संयम है और आत्मा ही प्रत्याख्यान है । प्रत्याख्यान का मतलब छोड़ देना नहीं है । आत्मा को समझ लिया, प्रत्याख्यान हो गया । आत्मा
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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