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________________ २० महावीर की साधना का रहस्य सूत्रों में एक चर्चा है कि आठ प्रदेश ऐसे हैं, जो प्रकट रहते हैं, अभिव्यक्त रहते हैं। उन पर कोई आवरण नहीं होता। जिन्हें हम मनःचक्र की आठ पंखुड़ियां कहते हैं, वे आठ प्रदेश हैं, जिन पर चेतना पहुंचने पर सम्यक्त्व का विकास या जागरण का विकास होता है। उसके पहले जागृति का विकास नहीं होता । यह बहुत महत्त्व की बात है । हमारी प्राणशक्ति जब नीचे रहती है, उस स्थिति में चेतना का विकास नहीं हो सकता, सम्यक् ष्टि का विकास नहीं हो सकता । प्राणशक्ति को हमें ऊपर की ओर ले जाना ही होगा। और ले जाये बिना उसमें स्थिरता नहीं आ सकती। मन की चंचलता, मन की आसक्ति समाप्त नहीं हो सकती । इसलिए अनन्तानुबन्धी कषाय समाप्त हुए बिना जागृति प्राप्त नहीं होती। अनन्तानुबन्ध की ग्रंथि या जिसे हम राग-द्वेष की ग्रन्थि कहते हैं, जब तक यह समाप्त नहीं होती, तब तक जागरण प्राप्त नहीं हो सकता । ग्रन्थि का विच्छेद या ग्रंथि का क्षीण होना आवश्यक है । ग्रन्थि का विच्छेद हुए बिना सम्यक्त्व प्राप्त नहीं हो सकता। वह ग्रंथि कहां है ? वह गांठ कहां है हमारे मनःचक्र में ? इसे हम गांठ क्यों मानते हैं ? इसका एक कारण है । हमारे शरीर के जो स्नायु हैं, वे स्नायु सीधे भी चलते हैं और टेढ़े-मेढ़े भी चलते हैं । वे स्नायु जहां बहुत उलझे हुए हैं, टेढ़े हैं, उन्हें गांठ कहा जाता है । गांठ क्यों कहा जाता है ? क्योंकि वहां प्राणशक्ति का प्रवाह सीधा नहीं होता। प्राणशक्ति को वहां घुमाव करके गति करनी पड़ती है । इसलिए उसे ग्रन्थि कहा जाता है। कुछ लोग उसे चक्र भी कहते हैं । क्योंकि वहां चक्राकार गति करनी पड़ती है। और कमल शब्द कहने का भी अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है । कमल का मतलब यहां कमल शब्द से नहीं, आप कमल की भावना से लीजिए। कमल का धर्म क्या है ?-संकुचित होना और विकसित होना । संकोच और विकोच, यह कमल का धर्म है । तो वहां हमारी चेतना या प्राणशक्ति के द्वारा उन स्नायुओं में या उलझे हुए तारों में संकोच और विकोच भी होता रहता है, चेतना का प्रवाह वहां प्रबाहित होता है । चेतना प्रवाहित होती है । वे खुल जाते हैं, विकसित हो जाते हैं। जब प्राणशक्ति का प्रवाह कम होता है, वे फिर सिकुड़ जाते हैं, संकुचित हो जाते हैं । इसलिए उन्हें कमल कहना कोई अत्युक्ति नहीं, धर्म के अनुरूप ही बात है । ग्रन्थि, चक्र या कमल-ये तीनों बातें कही जा सकती हैं—मनःचक्र, मनोग्रन्थि या मन-कमल । मन के चक्र से हृदयचक्र बिलकुल भिन्न है । हृदयचक्र से भिन्न जो मन
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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