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________________ प्राणायाम : एक ऐतिहासिक विश्लेषण ३०३ का ही दूसरा पर्याय है । जैन-साधना पद्धति में कायोत्सर्ग प्राणायाम संयुक्त होता है। जैन साधना में प्राणायाम की परम्परा बहुत प्राचीन है । जैन साहित्य के दो मौलिक विभाग हैं—पूर्व और अंग । इनमें अंगों की अपेक्षा पूर्व अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । पूर्व-श्रुत के चौदह विभाग हैं। उनमें बारहवां विभाग समवायांग' और नन्दी के अनुसार प्राणायु और कषायापाहुड के अनुसार प्राणवायु है। नन्दी चूणि के अनुसार प्राणायु पूर्व में आयु-प्राण तथा अन्य प्राणों का वर्णन है। प्राण दस हैं-१. स्पर्शन इन्द्रिय प्राण, २. रसन इन्द्रिय प्राण, ३. घ्राण इन्द्रिय प्राण, ४. चक्षु इन्द्रिय प्राण, ५. श्रोत्र इन्द्रिय प्राण ६. मन प्राण, ७. वचन प्राण, ८. काय प्राण, ६. श्वासोच्छ्वास प्राण, १०. आयुष्य प्राण । वीर सेनाचार्य के अनुसार प्राणवायु पूर्व दस प्राणों की हानि और वृद्धि का वर्णन करता है तथा मनुष्य पशु आदि से सम्बन्धित अष्टांग आयुर्वेद का निरूपण करता है। धवला में जयधवला जैसा ही वर्णन है । केवल एक बात पर विशेष बल दिया गया है कि प्राणावाय पूर्व में प्राण और अपान का विभाग विस्तार से १. समवायांग, समवाय १४ । २. नंदी, सूत्र ५६। ३. कषाय पाहुड, जयधवला, भाग १, पृ० २६ । ४. नंदो चूर्णि, पृ० ५८, हारिभद्रीया वृत्ति, पृ० १०८ : बारसमं पाणाउं, तत्थ आउं प्राणविधानं सव्वं सन्नेयं बन्ने य प्राणा वन्निता। मलयगिरि वृत्ति पत्र २४१ : द्वादश प्राणायुः प्राणाः पंचेन्द्रियाणि त्रीणि मानसादीनि बलानि उच्छवासनिश्वासौचायुश्च प्रतीतम्, ततो यत्र प्राणा आयुश्च सप्रभेदमुपवर्ण्यन्ते, तदुपचारतः प्राणायुरित्युच्यते । ५. कषाय पाहुड़, जयधवला, भाग १, पृ० १४६ : पाणावायपवादो दसविइ पाणाणं हाणिवड्ढीओ वण्णेदि । ६. कषाय पाहुड़, जयधवला, पृ० १४६-१४७ : करि-तुरय-णारायि-संबद्ध मठंगमाउव्वेदं भणदि त्ति वृत्तं होदि ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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