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________________ ३०२ महावीर की साधना का रहस्य की विशिष्ट प्रक्रिया है। मुनि के लिए वह दिन में अनेक बार करणीय है । आचार्य अमितगति ने एक दिन-रात के कायोत्सर्ग की संख्या अट्ठाईस मानी है - ( १ ) स्वाध्याय काल में १२, ( २ ) वंदनाकाल में ६, (३) प्रतिक्रमण काल में ८, और ( ४ ) योगभक्तिकाल में २ | एक दिन रात में इतनी बार कायोत्सर्ग करनेवाला प्राणायाम से अपरिचित कैसे रह सकता है ? कायोत्सर्ग का कालमान श्वासोच्छ्वास से किया जाता था । आवश्यक नियुक्ति के अनुसार कायोत्सर्ग का उच्छ्वासमान इस प्रकार है' कायोत्सर्ग दैवसिक रात्रिक पाक्षिक उच्छ्वास १०० ५० ३०० अन्य अनेक प्रयोजनों में आठ, सोलह, पचीस सत्ताईस, एक सौ आठ उच्छ्वासमान कायोत्सर्ग का विधान प्राप्त है । " नमस्कार महामंत्र की नौ आवृत्तियां सत्ताईस श्वासोच्छ्वास में की जाती हैं ।" उच्छ्वास का कालमान एक चरण के समान मान्य है । १. 'दशवैकालिक, चूलिका २१७ : अभिक्खणं काउस्सग्गकारी कायोत्सर्ग चातुर्मासिक सांवत्सरिक श्वासोच्छ्वास की सूक्ष्म प्रक्रियाओं की स्वीकृति प्राणायाम की स्वीकृति है । इस आधार पर यह तथ्य संपुष्ट होता है कि प्राणायाम जैन परम्परा में सम्मत रहा है । प्राणायाम शब्द महर्षि पतंजलि द्वारा आविष्कृत हो सकता है । प्राचीन उपनिषदों में प्राणायाम का उल्लेख नहीं है । इससे प्रतीत होता है कि प्राणायाम के पुरस्कर्ता महर्षि पतंजलि हैं । हठयोग की परम्परा में वह योग - सूत्र से ही उद्धृत किया गया है । बौद्ध साधना पद्धति में आनापान स्मृति की प्रतिपत्ति है । वह प्राणायाम २. अमितगति श्रावकाचार, ८।६६, ६७ । ३. आवश्यक निर्युक्ति, १५४४ । ४. आवश्यक निर्युक्ति, १५४८, १५५२ । ५. अमितगतिश्रावकाचार ८।६६ | ६. व्यवहार भाष्य १२२ : उच्छ्वास ५०० १००८ पायसमा ऊसासा, कालपमाणेण होंति नायव्वा ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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