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________________ २६८ महावीर की साधना का रहस्य आत्मा की गहराई में जाएं तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। और इस प्रक्रिया से हम अपनी मौलिक ध्यान पद्धति के बारे में आने वाली जिज्ञासा का साधिकार समाधान दे सकते हैं । वीतरागता की कमी के कारण वर्तमान साधु-संस्था में तथा विश्व के समक्ष जो संकट उपस्थित हुआ है उसका निवारण वीतरागता के विकास द्वारा ही किया जा सकता है। • कायोत्सर्ग, भावना और ध्यान- इनके अभ्यास का क्रम क्या है ? सबसे पहले भावना का अभ्यास करना चाहिए । जब तक भावना के द्वारा मन भावित नहीं होता तब तक ध्यान करने की योग्यता नहीं आती। यह मनोविज्ञान के विलयन का सिद्धान्त है । विलयन के दो प्रकार हैं-योग और वियोग । यदि हम प्रवृत्ति (योग) का निरोध नहीं करते हैं तो वह बढ़ती चली जाती है । जिस प्रवृत्ति का निरोध कर देते हैं वह कम हो जाती है । कुछ मनोवैज्ञानिकों और दार्शनिकों ने यह माना है कि जिस प्रवृत्ति को हम लम्बे समय तक नहीं दोहराते वह समाप्त हो जाती है। वही प्रवृत्ति जीवित रहती है जिसकी पुनरावृत्ति होती है । यह विरोध अर्थात् प्रतिपक्ष का सिद्धांत है । भगवान् महावीर की वाणी में मिलता है—'उपशम से क्रोध, मृदुता से मान, ऋजुता से माया और संतोष से लोभ को जीतो।' विरोध के सिद्धान्त का तात्पर्य है एक प्रवृत्ति को विरोधी प्रवृत्ति के द्वारा समाप्त कर देना । भावना का सिद्धान्त भी यही है। पुराने संस्कार को तोड़ने के लिए नए संस्कार का निर्माण भावना के द्वारा होता है। जब तक राग-द्वेष का संस्कार प्रबल होता है तब तक हमारी प्रीति दूसरी ओर जाती है, ध्यान की ओर नहीं जाती । भावना के द्वारा उस संस्कार को बलहीन करने पर ही ध्यान के प्रति आकर्षण उत्पन्न होता है । तृष्णा के स्थान पर वैराग्य की भावना, अज्ञान के स्थान पर ज्ञान की भावना, मिथ्यादृष्टि के स्थान पर सम्यग् दर्शन की भावना और रागात्मक प्रवृत्तियों के स्थान पर चारित्र की भावना का अभ्यास कर ध्यान की भूमिका का निर्माण किया जा सकता है। ध्यान के वातावरण की दृष्टि से कायोत्सर्ग का स्थान पहला हो सकता है किन्तु ध्यान के प्रति प्रीति उत्पन्न होने की दृष्टि से भावना का स्थान प्रथम है । ध्यान का वातावरण स्थिरता से निर्मित होता है । हमारी एकाग्रता में सबसे बड़ी बाधा हैशरीर की चंचलता । वह विसजित नहीं होती तब तक ध्यान की आंतरिक तैयारी पूर्ण नहीं होती। इस प्रकार अभ्यास का क्रम यह बनता है-भावना का अभ्यास, कायोत्सर्ग का अभ्यास, फिर ध्यान का अभ्यास ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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