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________________ १८ महावीर की साधना का रहस्य सारी उपाधियां समाप्त हो जाती हैं। इसमें फिर कोई उपाधि नहीं रहती। इस चेतना के प्रकट होने पर सारे द्वन्द्व और द्वन्द्वों से होने वाली सारी प्रतिक्रियाएं और परिणाम समाप्त हो जाते हैं। ध्यान-सम्प्रदाय के एक साधक थे । उनका नाम था कंचु । वे क्योटो में रहते थे । एक दिन उनके पास क्योटो का गवर्नर आया । बाहर द्वारपाल खड़ा था । गवर्नर साधक से मिलना चाहता था। अपना कार्ड दिया । द्वारपाल कार्ड लेकर साधक के पास पहुंचा और जाकर कहा-'कोई व्यक्ति बाहर खड़ा है और आपसे मिलना चाहता है।' साधक ने देखा, कार्ड में लिखा है'मैं आपसे मिलना चाहता हूं। मेरा नाम है किटेगामी-क्योटो का गर्वनर ।' परिचय पढ़कर साधक ने कहा- 'जाओ, लौटा दो । आगंतुक से कह दो कि मैं उसे नहीं जानता।' वह गया और जाकर कार्ड दे दिया । कहा कि वे आपसे मिलना नहीं चाहते, वे आपको नहीं जानते । उसने कार्ड हाथ में लिया । कुछ काटकर पुनः द्वारपाल को दे दिया और कहा कि इसे ले जाकर दे दो । द्वारपाल ने पुनः साधक को कार्ड दे दिया। उसमें अब केवल नाम लिखा था-किटेगामी । गवर्नर उपाधि नहीं थी। साधक कार्ड देखते ही मुसकराया और बोला, 'अच्छा ! किटेगामी आया है। बहुत अच्छा हुआ । मैं उससे मिलना ही चाहता था । जाओ, जल्दी बुलाकर लाओ।' साधक गवर्नर से नहीं मिलना चाहता था, किटेगामी से मिलना चाहता था। कितना अंतर आ गया ! किटेगामी से मिलने में कोई कठिनाई नहीं हुई, किन्तु क्योटो के गवर्नर से मिलने में उसे कठिनाई हुई । यह सारी मिलन की कठिनाई उपाधियों के कारण होती है। हमारी जितनी उपाधियां होती हैं, जितने विकल्पों की, जितने परिणामों की-चेतना के परिणामों की या वैभाविक परिणामों की, जितनी उपाधियां हमारे भीतर आ जाती हैं, उतनी ही हमारे अन्तर्-मिलन की कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं । जैसे-जैसे उपाधियां हटती हैं, हमारे मिलन की दूरियां और कठिनाइयां भी समाप्त हो जाती हैं। निर्जरावस्था की चेतना आने पर सारी उपाधियां समाप्त हो जाती हैं। उपाधियों के समाप्त होते ही जिनसे हमें मिलना है, वे हमसे मिल जाते हैं। चेतना की तीन श्रेणियां हैं, तीन कक्षाएं हैं-मूर्छा की चेतना, जागृति की चेतना और वीतरागता की चेतना। पहली है मूर्छा की चेतना । इसमें जागृति का क्षण नहीं रहता। दूसरी है जागृति की चेतना । यहां से जागरण का प्रारम्भ होता है। इसी को भग
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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