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________________ २७८ महावीर की साधना का रहस्य कहा ध्यान का अर्थ है स्थिरता। क्या शरीर की चंचलता में ध्यान नहीं हो सकता? शरीर की स्थिरता और फिर मन की स्थिरता-यह एक सामान्य पद्धति है। कुछ विशेष पद्धतियां भी हैं। उनका प्रयोग शरीर की चंचलता की स्थिति में भी किया जाता है। जैनों में 'गमन योग' और बौद्धों में 'स्मृति प्रस्थान' सम्मत हैं । एक आदमी चल रहा है और वह 'मैं चल रहा हूं'-इसी विषय में एकाग्र है, उसकी स्मृति इसी में संलग्न है । दूसरा कोई विकल्प नहीं आ रहा है तो चलते समय भी ध्यान हो सकता है । चक्राकार घूमते समय इसका अनुभव किया जाए कि शरीर घूम रहा है और मन स्थिर है तो इस अनुभव में शरीर और मन की भिन्नता स्पष्ट होती है और मन अपने आप में शान्त हो जाता है । यह सक्रिय ध्यान है । ध्यान की विकसित भूमिका में इसे छोड़ 'अक्रिय' ध्यान करना होता है। सालंब या सविकल्प ध्यान को छोड़कर निरालम्ब निर्विकल्प ध्यान में जाना होता है । वहां स्थिरता अनिवार्य है या सहज-स्वाभाविक है । कायिक ध्यान या कायोत्सर्ग के द्वारा शरीर सध जाता है, फिर शरीर के जिस अवयव को स्थिर रखना होता है, पूरे शरीर को स्थिर रखना होता है तो पूरे शरीर को स्थिर रख लेते हैं । कोशा वेश्या ने सरसों के ढेर पर नृत्य किया । सरसों के ढेर पर रखी हुई सूई की नोंक पर नृत्य करना कायोत्सर्ग के सुदढ़ अभ्यास के बिना नहीं हो सकता। शरीर को इतना हल्का कर लेना कि वह अन्तरिक्ष में भी टिक सके, अधर रह सकेयह केवल स्थूल शरीर को शिथिल करने से नहीं होता। यह तब होता है जब सूक्ष्म शरीर पर भी हमारा नियंत्रण स्थापित हो जाता है और शरीर पर होने वाली ममत्व की ग्रन्थि खुल जाती है। • भेव-ज्ञान के प्रकरण में कहा गया कि सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर को देखता है । सूक्ष्म शरीर स्वयं अचेतन है, फिर वह स्थूल शरीर को कैसे देखेगा ? सूक्ष्म शरीर स्वयं चेतन नहीं है किन्तु उसमें चैतन्य संक्रान्त है । चैतन्य के संक्रमण का क्रम यह है कि हमारी चेतना सबसे पहले कार्मण शरीर में संक्रान्त होती है। वहां से छनकर तैजस शरीर में आती है और वहां से स्थूल शरीर में । चैतन्य का जितना निकट का सम्बन्ध सूक्ष्म शरीर के साथ होता है उतना स्थूल शरीर के साथ नहीं होता । स्थूल शरीर की अपेक्षा चेतना सूक्ष्म शरीर में अधिक जागृत रहती है और जो सूक्ष्म शरीर बाहर निकलता है है वह चेतना के साथ ही निकलता है । इसी को जैन परिभाषा में 'समुद्घात' कहते हैं । चेतनायुक्त सूक्ष्म शरीर में जानने की क्षमता रहती है, इसलिए यह आश्चर्य का विषय नहीं है।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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