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________________ २७० महावीर की साधना का रहस्य पहला युग है भगवान् महावीर से आचार्य कुन्दकुन्द तक। इस युग में ध्यान की मौलिक पद्धति प्राप्त होती है । भगवान् महावीर ध्यान करते थे । उन्होंने साढ़े बारह वर्ष के साधन-काल में अधिकांश समय ध्यान में बिताया। अनेक दिनों तक निरन्तर ध्यान किया। उस समय के ग्रन्थों में जिस किसी मुनि का वर्णन है उसके साथ 'ध्यानकोष्ठोपगत' विशेषण जुड़ा हुआ है । उस समय के मुनि ध्यान करते थे, यह स्पष्ट है। इसे स्पष्ट करना है कि वे क्या ध्यान करते थे ? किस पद्धति से ध्यान करते थे ? आगमयुगीन ध्यान की पद्धति का अनुसंधान करने पर चार तत्त्व प्राप्त होते हैं—कायोत्सर्ग, भावना, विपश्यना और विचय । पहला तत्त्व है-कायोत्सर्ग । काया की प्रवृत्ति का विसर्जन करना, ममत्व का विसर्जन करना, भेद-विज्ञान का अनुभव करना-इन तीनों का समन्वित नाम है कायोत्सर्ग । हम अपने-आप को शरीर समझे हुए होते हैं । चेतना की ओर हमारा ध्यान जाता ही नहीं । शरीर का अनुभव ही सब कुछ होता है। इस स्थिति में हमारे राग और द्वेष के प्रकम्पन तीव्र हो जाते हैं। चैतन्य के अनुभव की बात और अधिक परोक्ष हो जाती है। कायोत्सर्ग चेतना और शरीर के भेदज्ञान का पहला बिन्दु है । इस बिन्दु पर ही हमें 'चेतना और शरीर दो हैं', इसका स्पष्ट अनुभव होता है । शास्त्र या शब्दों के आधार पर हम चेतना और शरीर को दो मान लेते हैं पर उसका स्पष्ट अनुभव नहीं होता । आचार्य कुन्दकुन्द ने इसे बहुत स्पष्ट अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने लिखा है-'शास्त्र ज्ञान नहीं है क्योंकि वह स्वयं कुछ भी नहीं जानता। इसलिए ज्ञान अन्य है और शास्त्र अन्य है । शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द स्वयं कुछ भी नहीं जानता। इसलिए ज्ञान अन्य है और शब्द अन्य है।" शास्त्र के आधार पर चेतना और शरीर को पृथक् मान लेना एक बात है और उनके पार्थक्य का अनुभव करना दूसरी बात है। इस अनुभव का प्रारम्भ कायोत्सर्ग के द्वारा होता है। इससे शरीर में शिथिलता आती है, तनाव समाप्त होता है, ममत्व की गांठ खुलती है और भेदविज्ञान स्पष्ट हो १. समयसार, ३६०, ३६१ : सत्थं णाणं ण हवइ जम्हा सत्थं ण याणए किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सत्थं जिणा विति ।। सद्दो णाणं ण हवइ जम्हा सद्दो ण याणए किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सदं जिणा विति ।।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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