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________________ २४० महावीर को साधना का रहस्य व्याख्यात है, उसका प्रतिपादन औपपातिक सूत्र में मिलता है। विनय के सात प्रकार हैं १. ज्ञान विनय । २. दर्शन विनय । ३. चारित्र विनय । ४. मन विनय । ५. वचन विनय । ६. काय विनय । ७. लोकोपचार विनय । इस वर्गीकरण से कहा जा सकता है कि भगवान् महावीर की समग्र साधना पद्धति इस एक शब्द 'विनय' में संग्रहीत हुई है। विनय आंतरिक प्रक्रिया है । यह अहं की ग्रन्थि को तोड़ने की प्रक्रिया है, अहं-मोक्ष की प्रक्रिया है। अहं की गांठ तीव्र होती है और वह हर जगह बाधक बनती है । ज्ञान में भी बाधक बनती है। अभिमानी व्यक्ति ज्ञान को स्वीकार नहीं कर सकता। वह अहं के प्रदर्शन में ज्ञान का नियोजन करता है। दर्शन में भी अहं की गांठ बाधक बनती है। अहं इतने गलत ढंग से प्रस्तुत होता है कि व्यक्ति सत्य को यथार्थ रूप में देख ही नहीं पाता । वह अयथार्थ को देखता है, होता कुछ और है और देखता कुछ और है। छोटी-सी कहानी है एक बुढ़िया थी। उसके पास एक मुर्गा था। मुर्गा रोज बांग देता और बाद में सूरज निकलता था। बुढ़िया को ऐसा अहं हो गया कि मेरा मुर्गा बांग देता है तभी सूरज निकलता है। यदि यह बांग न देगा तो सूरज निकलेगा ही नहीं । कुछ दिन बीते । एक दिन बुढ़िया का गांववालों से झगड़ा हो गया। बुढ़िया नाराज हो गयी। उसने गांववालों से कहा-'लो, मैं गांव को छोड़कर चली जाती हूं। तुम भी ध्यान रखना । मैं जाऊंगी तो मेरा मुर्गा भी मेरे साथ चला जाएगा। फिर सूरज कैसे निकलता है, देखूगी !' बुढ़िया चली गयी। मुर्गा उसके साथ चला गया। वह दूसरे गांव में जाकर बस गयी। वहां भी वही हुआ। मुर्गों के बांग देने के बाद ही सूरज निकलता। जब-जब मुर्गा बांग देता है, तब-तब बुढ़िया सोचती है-देखा, मेरा मुर्गा बांग देता है तो इस गांव में भी सूरज निकल आता है। यहां तो सूरज निकल आता है किन्तु वे बेचारे रोते होंगे पीछे से, क्योंकि वहां मेरा मुर्गा
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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