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________________ तप समाधि २३५ चोट पड़ी सूक्ष्म शरीर पर । ऊर्जा का स्रोत है स्थूल शरीर । हमारा मन बुरी बात सोचता है तो ताकत किसे मिलती है ? ताकत मिलती है सूक्ष्म शरीर को, कर्म शरीर को । सारी शक्ति प्राप्त होती है स्थूल शरीर के द्वारा । जब भोजन बंद होता है तो परेशानी होती है सूक्ष्म शरीर को । उसका प्रभाव वहाँ तक पहुंच जाता है । जब हम आसन करते हैं तब विशेष स्थान जागृत होते हैं । वे विशेष स्थान प्राण शरीर में हैं। उससे आगे होते हैं कर्म शरीर में । जो चक्र स्थान हैं या मर्म स्थान हैं, उनका मूल है कर्म शरीर । वहां से वे प्रतिनिधित्व होते हैं प्राण शरीर में और वहां से उनका प्रतिबिम्ब पड़ता है स्थूल शरीर में । एक दूसरे का प्रतिबिम्ब है । तीव्रतम घटना अंकित होती है कर्म शरीर पर, उससे हल्की तेजस शरीर पर और अत्यन्त स्थूल होती है स्थूल शरीर पर । इसको ही हम सब कुछ मान लेते हैं । हमारे चक्र मूलतः कर्म शरीर में हैं । अच्छाबुरा संस्कार, ज्ञान-अज्ञान - यह सारा का सारा लेखा-जोखा वहां से होता है । जब हम इस स्थूल शरीर में सक्रियता पैदा करते हैं तो उसका प्रभाव होता है प्राण शरीर पर और फिर कर्म शरीर पर । वहां तक प्रभाव पहुंच जाता है । ठीक यही बात प्रतिसंलीनता में है । जब हम प्रतिसंलीन होते हैं तब हम अपनी इन्द्रियों को, मन को रोकते हैं, विवेक से रोकते हैं । कर्म शरीर को जो मिल रहा था, वह बन्द हो जाता है । इस प्रकार चाहे हम भोजन बंद करें, आसन आदि के द्वारा विशेष स्थानों को सक्रिय करें अथवा इन्द्रियों को तथा मन को रोकने का प्रयत्न करें—–— इन तीनों का प्रभाव कर्म शरीर तक पहुंचता है । अगर नहीं पहुंचता है तो ये सारी बातें तप की कोटि में नहीं आतीं । तप नहीं होता । इस स्थूल शरीर से हमारा विरोध क्या है ? इस बेचारे ने हमारा बिगाड़ा ही क्या है ? तप तभी है जब वह कर्म शरीर को तपाए । तपाने की प्रक्रिया बाहर की ओर से मिलती है, इसलिए कहा गया बाह्य तप, बाहर का तप । जो कर्म शरीर को क्षीण न करे, प्रभावित न करे वह तप नहीं होता महावीर की भाषा में । जो केवल स्थूल शरीर को तपाता है, महावीर ने उसे अज्ञान तप कहा है । दो शब्द हैं— बालतप और पंडिततप, ज्ञानतप और अज्ञानतप । एक व्यक्ति अग्नि का ताप लेता है, शूलों की शय्या पर सो जाता है यह बालतप है, अज्ञानतप है । यह कठिन भी बहुत है । महावीर ने कहा - 'अज्ञानपूर्ण तप तप नहीं है, कष्ट अलग बात है और तप अलग बात ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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