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________________ २३४ महावीर की साधना का रहस्य उत्तेजना पैदा हो रही है, उसका मार्ग अवरुद्ध किया जाए। आसन का उपयोग यह है कि शरीर के जो मर्म-स्थल हैं, जहां ज्ञानवाहक और गतिवाहक सूत्र हैं (जिन्हें योग की भाषा में चक्र, शरीर-शास्त्रीय भाषा में ग्रंथियां कहते हैं) उन बिन्दुओं को प्रभावित करना, उनको सक्रिय करना, उनमें हलचल पैदा करना, उन्हें जागृत करना। आयुर्वेद के ग्रन्थों में १५० मर्म-स्थल माने हैं और जापानी मानीषियों ने सात सौ से अधिक मर्म-स्थानों की गवेषणा की है। इन सबको सक्रिय कर देना आसन का कार्य है। इसको हम कायक्लेश कहते हैं। प्रतिसंलीनता संबंध-विच्छेद की प्रक्रिया है । आंख से कुछ दिखाई दे रहा है और वह व्यवधान बन रहा है तो आंख को बन्द करें। कान से कुछ सुनाई दे रहा है और व्यवधान बन रहा है तो कान को बन्द करें। भोजन से कठिनाई होती है तो खाओ मत, जीभ पर कुछ डालो ही मत । एक शब्द में यह निरोध की प्रक्रिया है। प्राप्त विषय पर राग-द्वेष न करना ही प्रतिसंलीनता का एक प्रकार है । किन्तु यह उतना बाह्य नहीं है, पर बाह्य के वर्गीकरण से जुड़ा हुआ है । बाह्य तप में पहला प्रकार ही अधिक उपयुक्त लगता है कि विषयों से अपने आपको अलग कर दो। उससे हटा लो। खिड़कियों को, रास्तों को बन्द कर दो जिससे कि तुम तक कोई वस्तु पहुंचे ही नहीं। इस प्रकार वाह्य तप में तीन बातें प्राप्त होती हैं१. भोजन को सर्वथा बंद कर देना या अल्प कर देना । २. शरीर में हलन-चलन पैदा करना जिससे कि शरीर के विशेष स्थान सक्रिय हो जाएं, वे अपना संकुचन छोड़कर विकसित हो जाएं, खुल जाएं। ३. निरोध करना । विषयों के आगमन-द्वारों को रोकना या सहज प्राप्त इन्द्रिय-विषयों के प्रति राग-द्वेष न करना । हम भोजन नहीं करते हैं तो इसका परिणाम केवल स्थूल शरीर पर ही नहीं होता, सूक्ष्म शरीर पर भी होता है । यदि उसका परिणाम केवल स्थूल शरीर पर ही होता तो वह बहुत छोटी बात होती । स्थूल शरीर बेचारा दोनों ओर से घसीटा जा रहा है । इधर विषयों की अभिव्यक्ति होती है स्थूल शरीर में, उधर सजा भी उसे ही मिलती है। दूसरी बात यह है कि सूक्ष्म शरीर को भी शक्ति प्राप्त होती है स्थूल शरीर के माध्यम से ही। उसे भी शक्ति चाहिए। वह स्थूल शरीर से ऐसा काम करवाता है कि उसे शक्ति प्राप्त हो सके। उपवास करना सूक्ष्म शरीर को पसन्द नहीं है । भूखा रहा स्थूल शरीर और
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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