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________________ २३२ महावीर की साधना का रहस्य सकते हैं। कुछ लोग उपवास नहीं कर सकते, दो-चार घंटा ध्यान कर सकते हैं । सबको एक में कैसे बांधा जाए ? सबको यह अनिवार्य कैसे कहा जाय कि तुमको ध्यान ही करना होगा। अगर यह होगा तो उस भूमिका के सारे लोग वंचित रह जायेंगे जो तपस्या करने में रुचि रखते हैं। ध्यान करने की जिनमें योग्यता है उनको यदि एक मास की तपस्या करने को कहा जाए तो वे जीवन-पर्यन्त भी वैसा नहीं कर पायेंगे। वे भी अपनी योग्यता से वंचित रह जायेंगे । महावीर ने सर्वग्राही दृष्टिकोण के द्वारा सब साधना-पद्धतियों को ग्रहण कर कहा-'साधना का मार्ग ध्यान भी है और तप भी है और दूसरे मार्ग भी हैं। ध्यान के मार्ग से भी लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है और तप के मार्ग से भी लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है । तुम्हारी रुचि यदि तपस्या करने की है तो तपस्या करो। यदि ध्यान में रुचि है तो ध्यान करो। तुम्हारी रुचि यदि स्वाध्याय में है तो स्वाध्याय करो। सारे के सारे मार्ग हैं लक्ष्य तक पहुंचने के । कोई जल्दी ले जाएगा तो कोई देरी से । सब पहुंचेंगे निश्चित । यह तो अपनी-अपनी योग्यता और क्षमता का प्रश्न है। समूची साधना-पद्धति में बारह उपायों का संकलन किया गया है। उन उपायों को दो भागों में बांट दिया-यह बाहर का तप और यह भीतर का तप । यह स्थूल शरीर को प्रभावित करने वाला तप और यह सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करने वाला तप । यह पहले स्थूल शरीर को प्रभावित कर बाद में सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करने वाला तप और यह सीधा सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करने वाला तप । पहले का नाम है बाहर का तप । नाम भी सुन्दर है । यह भीतर का तप नहीं है । यह दरवाजे तक ले जाने वाला माध्यम है। अन्दर प्रवेश निषिद्ध है। जो बाह्य तप में रुचि लेते हैं, वह उनके चुनाव का ही परिणाम है । यह सारा चुनाव स्थूल शरीर के स्तर पर हुआ। आचार्यों ने इसकी परिभाषा करते हुए, इसे बाह्य तप कहने के कई कारण बतलाए हैं । उनमें दो मुख्य हैं १. यह बाहरी सामग्री से संबंध रखता है, इसलिए बाह्य तप है। २. यह बाहर के शरीर को तपाता है, मांस, मज्जा, रक्त को सुखाता है, शोषण करता है, इसलिए बाह्य तप है । प्राचीन ग्रंथों में तपस्वियों के शरीर के वर्णन में उल्लेख आता है कि तपस्वी का शरीर सूख गया था। मांस सारा चला गया था, रूक्ष हो गया था । शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया था, अस्थि-कंकाल मात्र रह गया था।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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