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महावीर की साधना का रहस्य
इस दुनिया में देखने को कभी नहीं मिलते। इतने सुन्दर और इतने तेज और ज्योतिर्मय कि शायद बाहरी दुनिया में आप इन स्थूल आंखों से देखने का स्वप्न भी नहीं ले सकते । जब हमारा सूक्ष्म जगत् के साथ संपर्क स्थापित होता है, तब ये सारी बातें, घटित होने लग जाती हैं। आपको शब्द भी सुनाई देने लग जाते हैं क्योंकि हर व्यक्ति के मस्तिष्क में या अपर मस्तिष्क में ऐसे यंत्र हैं कि सूक्ष्म बातों को भी सुन सकते हैं । जब अन्तर्-शक्ति काम करने लग जाती है तब ये सारी बातें घटित होने लग जाती हैं। मैं तो यह समझता हूं कि न यह कोई चमत्कार है, न कोई प्रदर्शन है, यह केवल सूक्ष्म जगत् में प्रवेश करने का एक प्रयोग है, प्राण और मन को सुषुम्ना में ले जाने का प्रयोग है । ले जाने के अनेक रास्ते हैं । उसमें एक रास्ता संकल्प का भी है । संकल्प को सिद्ध कर मन को सुषुम्ना में ले जा सकते हैं । आप अनुभव करते होंगे कि संकल्प के साथ हाथ जब ऊपर जाने लगता है तब करेंट का 'धक्का-सा आता है । यह प्राणधारा है । जिधर हमारे प्राण की धारा बहने लग जाती है, जिधर हमारा संकल्प जाता है, उधर ही प्राण की धारा का मुक्त प्रवाह हो जाता है । संकल्प के साथ-साथ प्राण जाता है । ठीक भगीरथ के पीछे जैसे गंगा चली थी या आदमी के पीछे-पीछे छाया चलती है, वैसे ही संकल्प के साथ-साथ प्राण की धारा चलती है । जिधर आपने संकल्प कर लिया, उधर ही प्राण की धारा का मुख्य प्रवाह हो जाएगा । प्राण की धारा इतनी तेज हो जाती है कि करेंट का धक्का-सा लगता है, हाथ सहन नहीं कर सकता। मैं स्वयं अनुभव करता हूं कि बहुत बार ऐसा होता है । ध्यान चल रहा है, अकस्मात् ऐसा झटका आता है कि हाथ उठकर ऊपर तक आ जाता है । इस प्रकार उछलता है कि मानो किसी ने आकर झटका दिया है । हमारे भीतर जो तेजस् शरीर है, जो प्राणशक्ति है, उसकी गति तीव्र हो जाती है । वह झटका देती है । यह प्राण का प्रयोग है, संकल्प का प्रयोग है, और मन को विलय का प्रयोग है । मन विलीन हुआ और आप दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं । आप सूक्ष्म जगत् के साथ संपर्क स्थापित कर लेते हैं और फिर आपको विचित्र प्रकार की अनुभूति होने लग जाती है ।
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ध्यान की स्थिति में कुछ लोग गिर जाते हैं । वे जान-बूझकर गिरते हैं या ऐसा स्वाभाविक रूप से होता है ?
हमारे शरीर का संचालन करता है मस्तिष्क और बाहरी मन । वह जब शून्य होता है तो गिर भी सकता है। उसे पता है कि मैं गिर रहा हूं किन्तु