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________________ साधना का मूल्य : आंतरिक जागरूकता १८६ ऐसी स्थिति में चले जाते हैं कि वहां शांति का अनुभव उन्हें होता है । वे यह अनुभव करते हैं कि वे विचित्र दुनिया में चले गए हैं। कोई-कोई तो इस प्रकार की विचित्र बातें बताने लगता है कि मैं अपने पहले जन्म में चला गया हूं। मुझे यह दीखा, मुझे वह दीखा। किन्तु सारा-का-सारा उस मादक द्रव्य की परछाई में होता है और यह बात हिन्दुस्तान की बहुत सारी साधन-पद्धतियों के साथ भी जुड़ी हुई है। कुछ साधक हैं, वे भांग, गांजा, चरस आदि का प्रयोग चिरकाल से करते रहे हैं। बहुत सारे साधु-संन्यासी भी मादक द्रव्यों का प्रयोग करते हैं । वे मस्ती में रहते हैं, मस्ती में झूमते हैं और दूसरी दुनिया में विचरते रहते हैं। किन्तु वह स्थिति आत्म-विकास में बहुत साधक नहीं है। शायद वे बाह्य परिस्थितियों और बाह्य समस्याओं की विस्मृति प्राप्त कर लेते हैं। वे बाह्य चिन्ताओं, तनावों की विस्मृति होने के कारण मानसिक आराम भी अनुभव करते हैं और ऐसा लगता है कि वे किसी दूसरी स्थिति में पहुंच गए हैं। किन्तु वे आत्म-विकास में कोई साधक नहीं हैं। यह उसका क्षणिक उपयोग है और फिर ऐसा होता है कि हमारे स्नायु मादक द्रव्यों के प्रभाव से इस प्रकार के बन जाते हैं कि अगर दूसरे दिन वे मादक द्रव्य न मिलें तो सारा शरीर टूटने लग जाता है। मन बेचैन हो जाता है। जितनी शांति होनी चाहिए उससे सौ गुना अधिक अशांति हो जाती है। यह है दूसरा उपक्रम । यह विदेशों में बहुत चल रहा है। आज अमेरिका जैसे देश के विश्वविद्यालयों के छात्रों में मादक द्रव्यों का इस प्रकार प्रयोग चल रहा है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते । यहां जो बहुत सारे हिप्पी, बिटल आदि आ रहे हैं, वे लोग आ रहे हैं जो मादक द्रव्यों का सेवन कर आनन्द के लोक में पहुंच जाने की कल्पना रखते हैं। किन्तु हम इस मार्ग का अनुकरण नहीं कर सकते और इसका हमारी दृष्टि में कोई मूल्य भी नहीं है । उस विस्मृति का, मादक द्रव्य के प्रयोग से वर्तमान समस्याओं या तनावों की विस्मृति का मूल्य नहीं है, क्योंकि उससे अधिक तनाव बढ़ जाता है, और अधिक अशांति बढ़ जाती है। तीसरा मार्ग है बाहरी सुषुप्ति और भीतरी जागृति का। यह है ध्यान का मार्ग, यह है आत्म-साधना का मार्ग और आत्म-विकास का मार्ग जो कि हमें इष्ट है । हम हृदय का विकास चाहते हैं और यह ऐसा स्थायी मार्ग है कि आपने आधा घंटा भी उस स्थिति का अनुभव किया तो आपके विचार में परिवर्तन आएगा, आपके चिन्तन में परिवर्तन आएगा, आपके कार्यों में
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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