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ध्यान और कायोत्सग
१६६ वासनात्मक भावों का परिष्कार नहीं किया जा सकता। उनका परिष्कार किए बिना ध्यान में वांछित एकाग्रता प्राप्त नहीं हो सकती। वासनात्मक भावों के परिष्कार के लिए, मनोवृत्तियों के परिवर्तन के लिए मनोविज्ञान ने तीन उपाय सुझाए हैं—दमन, विलयन और शोधन । जैन साधना-पद्धति में इन तीनों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
चेतना पर पड़ने वाले किसी दबाव द्वारा किया जाने वाला दमन प्रतिक्रिया पैदा करता है । आन्तरिक चेतना में उत्पन्न विवेक द्वारा जो दमन होता है वह विकार उत्पन्न नहीं करता। यह भावना द्वारा ही सम्भव हो सकता है।
विलयन के दो प्रकार हैं-निरोध और विरोध । कषाय-चेतना को उत्तेजित करने वाले विषयों में इन्द्रियों का निरोध, कषाय-चेतना का निरोध, अकुशल मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का निरोध करने से ये प्रवृत्तियां विलीन हो जाती हैं। जिस वृत्ति को उत्तेजित होने का अवसर नहीं दिया जाता, जिसे लम्बी अवधि तक प्रकट होने का मौका नहीं मिलता, वह अपनेआप विलीन हो जाती है।। ___एक वृत्ति चालू है। उसके विरोध में दूसरी वृत्ति को चालू करना विरोध है। इस प्रक्रिया में दोनों वृत्तियां परस्पर टकराती हैं। यदि प्रतिपक्ष भावना सशक्त होती है तो पहले की वृत्ति के प्रकट होने में अवरोध हो जाता है । यह प्रतिपक्ष भावना का सूत्र है। उपशम, मृदुता, ऋजुता और संतोष क्रमशः क्रोध, मान, माया और लोभ की प्रतिपक्ष भावनाएं हैं । इनके अभ्यास से क्रोध आदि की वृत्तियां शांत हो जाती हैं ।
वृत्ति का शोधन मार्गान्तरीकरण द्वारा होता है । किसी व्यक्ति में राग प्रबल है, वह उसे छोड़ने में अपने-आपको असमर्थ पाता है । उसकी रागात्मक वृत्ति को एक साथ तोड़ा नहीं जा सकता, उसका मार्गान्तरण किया जा सकता है। किसी पुरुष का किसी स्त्री के प्रति राग है, उसे अर्हत् की भक्ति में बदलकर स्त्री के प्रति होने वाले आकर्षण से मुक्त किया जा सकता है ।
राग की तीन भूमिकाएं होती हैं—अप्रशस्तराग, प्रशस्तराग और विराग । अप्रशस्तराग वासनात्मक वृत्ति के प्रति समर्पित होता है। प्रशस्तराग पवित्र आत्मा के प्रति समर्पित होता है । विराग में ये दोनों वृत्तियां क्षीण हो जाती
भावनाएं असंख्य हो सकती हैं। कुछ मुख्य भावनाएं इस प्रकार हैं : १. अनित्य भावना-सब संयोग अनित्य हैं।