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________________ मनोविज्ञान और चरित्र-विकास १३७ है। माता के स्वभाव का परिवर्तन भी बच्चे के स्वभाव-परिवर्तन का निमित्त बन जाता है। एक मनोवैज्ञानिक ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि एक अमेरिकी महिला के कमरे में नीग्रो का चित्र टंगा रहता था। अपने गर्भकाल में वह बार-बार उस चित्र को देखती । उसका इतना बड़ा प्रभाव हुआ कि जो बच्चा जन्मा वह ठीक उस नीग्रो जैसा काला और उसी आकृति वाला हुआ। फिर जब उसका विश्लेषण किया गया तो मनोवैज्ञानिकों ने यही निर्णय दिया कि इस तस्वीर पर अधिक ध्यान केन्द्रित होने के कारण ऐसा मानसिक परिवर्तन हो गया। तो इस प्रकार के परिवर्तन भी उसमें निमित्त बन जाते यह इतना मिला-जुला प्रोग्राम है कि इसे अलग बांटना कठिन है। अब कोई यह कहे कि यह मकान जो खड़ा है, इसमें पत्थर की प्रधानता है, सीमेंट की प्रधानता है, छत की प्रधानता है या नींव की प्रधानता है ? प्रधानता किसी की नहीं है । सबका मिला-जुला कार्य है । उत्तरी ध्रुव में जन्म लेगा, वह गौर वर्ण हो जाएगा। अफ्रीका में जन्म लेगा तो बिलकुल काला बन जाएगा। यह प्रभाव किसका है ? बाह्य वातावरण का है। कोई भी कर्म जो विपाक में आता है, बाह्य निमित्तों से ही आता है, अन्यथा नहीं आता। उसकी जो अभिव्यक्ति होती है, उसे भी निमित्त चाहिए। जिस प्रकार का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव मिलता है, उस प्रकार की सारी वृत्तियां उसकी बन जाती हैं । उसी प्रकार का कर्म उसके हृदय में आ जाता है। चरित्र का मामला इतना मिश्रण है कि अनेक बातें इसमें मिलती हैं। इसीलिए मैंने कहा था कि ऐसा कोई कवच हमारे पास नहीं है, जो हम नितान्त व्यक्ति ही रहें । हम इतने सामाजिक हो जाते हैं और इतने प्रभावों को ग्रहण करते हैं कि शुद्ध अर्थ में कोई भी व्यक्ति व्यक्ति नहीं रह जाता । सब बातों का ध्यान भी नहीं रहता । अब पैतृक-परम्परा से जो मिला है, उसका क्या ध्यान रखेगा?
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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