SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर की साधना का रहस्य क्या व्यक्तिगत चरित्र-निर्माण में सामाजिक वातावरण की अनिवार्यता १३६ एक वातावरण होता है सामाजिक संदर्भों का और एक होता है अपना वैयक्तिक । वैयक्तिक का असर काफी होता है और बहुत ज्यादा होता है । परन्तु वैयक्तिक चरित्र को बाहर आने में, विकसित होने में सामाजिक वातावरण की अपेक्षा रहती है । चरित्र-निर्माण में वंशानुक्रम का प्रभाव अधिक होता है या पर्यावरण • का ? अब देखिए कि दोनों का अपना-अपना स्थान है और दोनों का अपनाअपना महत्त्व है । कुछ बातों में वंशानुक्रम प्रधान होता है तो कुछ बातों में पर्यावरण प्रधान होता है । इसलिए दोनों की तुलना नहीं की जा सकती । दोनों की अपनी विशेषताएं हैं । धार्मिक चेतना का हमारे जीवन में क्या योगदान है ? धार्मिक चेतना व्यक्ति को परमार्थ की भूमिका पर ले जाती है । फिर उसके सोचने का, चिन्तन करने का सारा क्रम बदल जाता है । जैसे मैंने बताया कि एक व्यक्ति को गाली दी, जो सामान्य मनोवृत्ति है कि गाली दी तो उसे गाली देना चाहिए | या गाली का जवाब इस प्रकार देना चाहिए कि दूसरी बार वह गाली न दे। अब जब वह धार्मिक चेतना से प्रभावित हो जाता है तो वह सोचता है कि इसने गाली दी और अगर वह दोष मुझमें है तो इसे छोड़ना चाहिए और अगर दोष मुझमें नहीं है तो यह गाली मुझ पर लागू ही नहीं हुई। तो फिर मुझे रोष क्यों करना चाहिए ? इस प्रकार सारे चिन्तन को बदल देता है । 0 बच्चे में जो परिवर्तन होता है वह माता-पिता के कारण अधिक होता है या परिस्थितियों के कारण अधिक होता है या उसमें कर्म प्रधान होता है ? माता-पिता का असर होता है, यह तो निश्चित है ही । परन्तु थोड़ा बहुत परिवर्तन वातावरण से भी होता है । और व्यक्तिगत संस्कारों से भी होता है । यह थोड़ा बहुत जो परिवर्तन है, इसे मनुष्य ग्रहण कर लेता है । एक दृष्टि से देखें तो माता-पिता एक होते हैं । किन्तु माता-पिता भी अनेक हो जाते हैं । बदल जाते हैं । जैसे एक बच्चा गर्भ में आया । माता बहुत शांत थी । शांत अवस्था में गर्भ धारण किया । बच्चा शांत प्रकृति का हो गया । किसी कारण से गर्भकाल में माता बहुत उद्दण्ड हो गई, तो बच्चा भी बहुत उद्दण्ड हो जाता
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy