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________________ मनोविज्ञान और चरित्र-विकास १२७ भय और प्रलोभन । मनुष्य के चरित्र-निर्माण में भय और प्रलोभन का बहुत बड़ा स्थान है । बच्चा कोई काम करना नहीं चाहता। स्कूल में जाना नहीं चाहता । माता ने कहा- 'बेट, स्कूल चले जाओ।" "नहीं जाऊंगा।" "यह लो आठ आना ।" बेटा स्कूल चला गया। आठ आना में स्कूल जाना हो गया । बच्चा कोई काम करना चाहता है और माता चाहती है कि वह यह काम न करे । मानता नहीं है । भय दिखाया, "उधर मत जाओ, हौआ है।" बच्चा डर गया, फिर वहां नहीं गया । भय और प्रलोभन-ये दोनों बहुत काम करते है । आप केवल बच्चे के लिए ही न सोचिए, ये हर आदमी के लिए काम करते हैं। हम लोग भगवान् महावीर में विश्वास करते हैं, आत्म-कर्तृत्व में विश्वास करते हैं, आत्मा में विश्वास करते हैं, अपने कर्म में विश्वास करते हैं, कर्म के फल में विश्वास करते हैं। फिर जगह-जगह क्यों जाते हैं ? क्योंकि हमें डर रहता है। हम देवता की मनौती मानते हैं । अगर देवता की मनौती नहीं मनाई जाएगी तो न जाने क्या हो जाएगा? बीमारी हो जाएगी और कोई उपद्रव हो जाएगा। यह भय हमको वहां तानकर ले जाता है । भय के कारण बहुत सारे काम करते हैं । जो काम लोग नहीं भी करना चाहते वह भी भय के कारण करते हैं । और मैं समझता हूं कि बहुत लोग धर्म भी भय के कारण करते हैं। धर्म इसलिए करते हैं कि नहीं किया तो परलोक बिगड़ जाएगा। नरक मिलेगा। इतने कष्ट भुगतने होंगे। निरंतर वेदना, अनन्त भूख, अनन्त प्यास, अनन्त सर्दी, अनन्त गर्मी--ये सारी सहन करनी होंगी। मन में यह भय है, इसलिए आप चाहते हैं कि धर्म करें। __ मन में प्रलोभन है कि धर्म करेंगे तो स्वर्ग मिलेगा। इतने बड़े प्रासाद, इतना आराम, इतना सुख, और इतनी शक्ति, इतना वैभव और इतना ऐश्वर्य -यह प्रलोभन धर्म की ओर आकृष्ट करता है। और भय अधर्म से बचाता है तथा धर्म की ओर आकृष्ट भी करता है । मैं समझता हूं कि यदि आज धर्म के साथ यह भय और प्रलोभन की बात छूट जाए तो पीछे कितना बचेगा ? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भय और प्रलोभन ये दोनों मिट जाएं तो पीछे धार्मिक लोग कितने बचेंगे ? कहना कठिन है । बहुत कठिन है। दुनिया के अधिकांश लोगों में जो धर्म चल रहा है, भय और प्रलोभनइन दो प्रेरणाओं से चल रहा है । ये दोनों धर्म के गुरुत्वाकर्षण हैं जो जनता को अपनी ओर खींच रहे हैं । यह गुरुत्वाकर्षण समाप्त हो जाए तो शायद
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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