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________________ १२० महावीर की साधना का रहस्य कहा-'क्या बताएं आपका, हाथी आज एक बहुत विचित्र स्थिति में चला गया । बोलता भी नहीं है, सुनता भी नहीं है, हिलता-डुलता भी नहीं है । न खाता है, न पीता है । न श्वास लेता है । और न कुछ ही करता है ।' राजा ने कहा-'क्या हुआ ? मर गया क्या ?' दूत ने कहा—'यह आप जानें। मैं तो मरा नहीं कहता । आप ही कहते हैं।' सचमुच यह भाषा का ही अन्तर था। मर गया, यह कहना नहीं था किन्तु वह सब कुछ कह दिया जो मृत के लिए कहा जा सकता है । 'अब हाथी इस दुनिया में नहीं है'—यह बताना था। 'वह मर गया'- इस भाषा में भी बताया जा सकता है, और 'वह खाता नहीं है, पीता नहीं है, बोलता नहीं है, हिलता-डुलता नहीं है, श्वास नहीं लेता है'-इस भाषा में भी बताया जा सकता है। आप चाहे यह कहें कि हमारा चिंतन नहीं हो रहा है, विचार नहीं हो रहा है । हम सोच नहीं रहे हैं, हम कल्पना नहीं कर रहे हैं । आप कह सकते हैं कि मन मर गया, मन का अस्तित्व नहीं है । मन विलीन हो गया, मन का अस्तित्व नहीं है-यह भाषा का भेद हो सकता है । तात्पर्य में मुझे कोई भेद दिखाई नहीं देता । वास्तव में सचाई यह है कि मन को उत्पन्न करने वाला यंत्र जब निष्क्रिय हो जाता है तब मन उत्पन्न ही नहीं होता । जब मन उत्पन्न नहीं होता तब हम कहते हैं कि मन का विलय हो गया । मन की अनुत्पत्ति की दशा, मन के जन्म न लेने की दशा, ठीक इसी भाषा में है मन का विलय हो जाना । हम कुछ भी कहें। कोई कठिनाई की बात नहीं है। हम यह कहें कि मन का विलय हो गया तो तात्पर्य यही है कि मन का अस्तित्व नहीं रहा। अगर हम यह कहें कि मन उत्पन्न नहीं हुआ, तात्पर्य होगा कि मन का अस्तित्व नहीं है । मूल बात तो तात्पर्य की है। तात्पर्यार्थ में हम जिसकी मीमांसा करते हैं वह यह है कि एक ऐसी स्थिति आ सकती है जहां मन नहीं रहता । हम यह मानकर न चलें कि मन रहता ही नहीं। यह स्थिति भी हमारी घटित होती है कि मन नहीं ही रहता । तो हमारे चेतना के स्तर पर दो स्थितियां निर्मित हो गयीं-एक मन के होने की स्थिति और एक मन के न होने की स्थिति । यह मन के न होने की स्थिति मनोविलय की स्थिति है और मन के होने की स्थिति वह है जिसका आप सब लोग अनुभव करते हैं। :: मन होता है और बहुत होता है । इसलिए हम मन नहीं होने की बात
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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