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________________ ११० महावीर की साधना का रहस्य • विचार-शून्यता पहले चरण में ही प्राप्त हो जाती है या उसके लिए लम्बी साधना अपेक्षित है ? यह कोई छलांग नहीं है कि हम सीधे विचार-शून्यता तक पहुंच जाएं । उससे पहले हमें बहुत कुछ करना होता है। एक आदमी बहुत भारी-भरकम है। डॉक्टर ने सलाह दी कि तुम्हें चर्बी घटानी है। ऐसा तो नहीं कि उसने आज ही खाना कम किया और शरीर की चर्बी घट गयी। या खाना बन्द कर दिया और घट गयी । खाना बन्द नहीं कर सकता। वन्द कर दे तो समूचा ही घट जाए । एक प्रक्रिया होती है कि खाना कुछ कम किया। कभी कुछ खाया, फिर कम किया । इस प्रक्रिया से चलते-चलते तो चर्वी घटाने की स्थिति तक पहुंच सकता है किन्तु छलांग भरकर नहीं पहुंच सकता । निर्विचारता तक पहुंचना अच्छी बात है । यह लक्ष्य है हमारा, किन्तु हम विचार को एक साथ छोड़कर निर्विचारता तक नहीं पहुंच सकते । विचार की भूमिका का सहारा लेकर ही निर्विचारता तक पहुंच सकते हैं। • हमारी प्रन्थियों के जो स्राव होते हैं उनका समुचित उपयोग होने पर ही लाभ प्राप्त होता है । इस दशा में हम मौन रहकर क्या ग्रन्थि-साव के प्रतिकल कार्य नहीं करते? स्राव की स्थिति से विचार करें तो खूब बोलना चाहिए और स्राव से लाभ उठाना चाहिए। और इसीलिए बोलते भी हैं। जब यह स्थिति आ जाए कि स्राव से बड़ा लाभ हमें मिलने लग जाए तब छोटे लाभ को छोड़ देना चाहिए । छोटा लाभ तब तक प्राप्त करना चाहिए कि जब तक उससे बड़ा लाभ प्राप्त न हो । जब हमारा मन स्वयं ब्रह्मरंध्र में विलीन हो जाए, जहां कि अमृत झर रहा है, उसी में चला जाए, तब इस स्राव को बन्द कर देने में कोई हर्ज नहीं होगा, कोई हानि नहीं होगी। • साधना का सम्बन्ध राग-द्वेष को ग्रन्थियों के खलने में है, तब फिर शरीर की प्रन्थियों पर इतना ध्यान क्यों दें ? राग-द्वेष की ग्रन्थियां भी शरीर की ग्रन्थियों के साथ ही खुलती हैं।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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