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________________ महावीर की साधना का रहस्य उत्पन्न करता हैं इसका बहुत बड़ा महत्त्व है । मंत्रशास्त्र में शब्दों पर विचार किया गया । 'अ' से लेकर 'ह' तक की वर्णमाला में, इस मातृका में कुछ अक्षर होते हैं शुभ, कुछ होते हैं अशुभ, और कुछ होते हैं मिश्र । आप लोगों साहित्य के क्षेत्र में दग्धाक्षर की चर्चा सुनी होगी । दग्धाक्षर ऐसे होते हैं कि उनका योग पड़ जाने पर कविता करने वाले का अनिष्ट हो जाता है हमारे यहां एक घटना प्रचलित है । एक साधु नागौर में था । उसने एक कोई कविता बनाई । कोई व्याख्यान बनाया । व्याख्यान बनाते समय ध्यान नहीं रहा और दग्धाक्षर का प्रयोग हो गया 'नागौर' में । अन्त में आ गया 'नागो रमे' । इसके दो अर्थ हो जाते हैं । एक तो यह कि नागोर शहर में और दूसरा अर्थ यह कि नागो रमे-यानी नग्न होकर रमण कर रहा है । कहते हैं कि दग्धाक्षर का ऐसा योग हुआ कि थोड़े ही समय में नागोर में रहते-रहते मुनि पागल हो गया और वस्त्र - विहीन होकर नग्न ही रमण करने लगा । । उसने लिखा – यह रचना लिखी पहले तो शब्द के प्रभाव के बारे में कुछ संदेह भी हो सकता था परन्तु अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है । अब ध्वनि तरंगों का व्यक्ति के मन पर, व्यक्ति के विचारों पर, और उसके शरीर पर असर होता है; यह सिद्धांत विज्ञान के द्वारा भी प्रस्थापित हो चुका है । तब हम क्यों न स्वीकार करें कि उस संघटना में इस प्रकार के कोई विचार आ जाते हैं और मन पर उनका असर हो जाता है । कालूगणी बहुत अच्छी कविता बना सकते थे परन्तु नाते नहीं थे । प्राय: बहुत कम बनाते थे । बहुत सारे व्यक्ति प्रार्थना करते कि आप कविता क्यों नहीं बनाते हैं ? वे कहते कि यह बहुत कठिन काम है, Saat दग्धाक्षर आ जाए तो ठीक नहीं रहेगा । इस विचार से उन्होंने कविता नहीं बनाई । दूसरों को प्रेरित करते, तब भी कहते कि दग्धाक्षर का पूरा-पूरा ध्यान रखना । १०८ वर्ण विन्यास का अवश्य ही एक परिणाम होता है । एक प्रकार की शब्दावली इस प्रकार आती है कि सुनने वाले पर भी उसका चमत्कार होता है और स्वयं पर भी एक असर होता है । एक शब्दावली का विन्यास इस प्रकार होता है कि शायद सुनने वाले को भी प्रिय नहीं लगती और खुद को भी पूरा संतोष नहीं होता । लिखने वालों के लिए तो बहुत बड़ी कठिनाई है, बहुत बड़ा प्रश्न है । एक पद्धति रही है – ज्योतिष की । ज्योतिषी कई पद्धतियों से प्रश्न का -
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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