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________________ महावीर की साधना का रहस्य हम साधारणतः कल्पना नहीं कर सकते। ध्वनि-तरंगों के द्वारा वे कार्य निष्पन्न हो सकते हैं जो हमारे किसी स्थूल उपकरण से नहीं हो सकते । हमारे प्राण की ध्वनि सूक्ष्मतम होती है। जब ध्वनि प्राण में चली जाती है, तब वहां बहुत विचित्र स्थिति पैदा हो जाती है। आपने सुना होगाबहुत सारे लोग कहते हैं, माला जपो, बोल-बोलकर जपो, लाभ होगा। मन से जपो, उससे भी अधिक लाभ होगा। यह इतना अन्तर क्यों आया ? बोलने वाला वही है, मंत्र वही है, केवल ध्वनि के प्रकंपन को सूक्ष्म करने के कारण लाभ की मात्रा में इतना अन्तर आ गया, शक्ति का संवर्द्धन हो गया। जो सूक्ष्म में शक्ति थी, उससे कहीं अधिक शक्ति सूक्ष्मतर में हो गई। यह ध्वनितरंगों का सिद्धान्त, ध्वनि के प्रकम्पनों का सिद्धान्त जो व्यक्ति समझ लेता है वह भावना, जप और संकल्प-इन तीनों से लाभ उठा सकता है । एक दिन किसी बहन ने प्रश्न पूछा-'संकल्प-जप कैसे किया जाए ?' मैंने उसका उत्तर भी दिया था। किन्तु इस प्रसंग में जब उस पर विचार करता हूं तो मुझे लगता है कि संकल्प कर लिया, वह लाभप्रद होगा, वह सफल होगा, यह कहना कठिन है। किन्तु उस संकल्प को अन्तर्मन तक पहुंचा दिया और वह भी ध्वनि के सूक्ष्म प्रकम्पनों के द्वारा पहुंचा दिया तो आप सही मानिए कि वह संकल्प अवश्य ही फलप्रद होगा। संकल्प के सिद्धान्त का एक सूत्र है-संकल्प उस समय करो जब ज्ञानतन्तु शून्य होने जा रहे हों। आपने आसन का प्रयोग किया । आपने भस्त्रिका का प्रयोग किया। आपने प्राणायाम का प्रयोग किया। दीर्घ-श्वास का प्रयोग किया। करते-करते आपको ऐसा लगे कि स्थूल चेतना लुप्त होती जा रही है, तन्द्रा या अर्धचेतना की स्थिति आ रही है, उस समय आप संकल्प करें। वह संकल्प आपका अन्तर्मन तक पहुंच जाएगा। वह अन्तर्चित्त तक पहुंच जाएगा। उस समय संकल्प की ध्वनि सूक्ष्म होगी। वह ध्वनि अन्तर् में पैठेगी, ठेठ गहराई में पहुंच जाएगी, अवचेतन मन तक पहुंच जाएगी। अन्तर्मन उस बात को पकड़ लेगा तो वह काम जरूर होकर रहेगा। ____ मैं नहीं चाहता कि काम हो, मन में वैसा संकल्प भी किया। किन्तु जब काम करने का प्रसंग आता है, स्थिति आती है और वह काम कर डालता हूं। यह द्वन्द्व क्यों ? यह दुविधा क्यों ? यह द्वैध क्यों ? मैं नहीं चाहता कि यह काम करूं, और समय आता है, उस समय काम कर डालता हूं। ऐसा क्यों होना चाहिए ? ये मेरे मन के दो टुकड़े क्यों ? यह मन का विभाजन
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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