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________________ . वाक्-संवर-१ एक कथाकार कथा कह रहे थे। विषय था-'क्रोध मत करो।' सूनने वाले सुन रहे थे। कुछ ऊंघ रहे थे। कुछ बातें कर रहे थे। कथावाचक ने बार-बार टोका । फिर भी वे नहीं माने। कथावाचक झल्ला उठा। गुस्सा आ गया । कथा हो रही थी-'क्रोध मत करो' और कथा करने वाला स्वयं क्रुद्ध हो उठा। ठीक उसी स्थिति का अनुभव मैं कर रहा हूं। विषय हैवाक्-संवर और मुझे बोलना है। मुझे वाणी का संवर नहीं करना है । ठीक उलटी बात हो रही है । अच्छा तो यह होता कि वाक्-संवर का वक्तव्य मौन के द्वारा होता । मैं भी मौन खड़ा रहता और आप भी मौन होकर सुनते । _ 'वाक्' एक बहुत बड़ा तत्त्व है । इस पर भारतीय मनीषियों ने पर्याप्त मीमांसा की है । 'मन' से कम नहीं की है। जितनी मीमांसा मन पर हुई है, मैं समझता हूं कि वाक् पर उससे अधिक हुई है। बहुत ज्यादा हुई है । और यहां तक हो गई कि आचार्यों ने कहा कि वाक् ही परमब्रह्म है, शब्द ही परमब्रह्म है । जैसे ब्रह्माद्वैतवाद एक दर्शन है वैसे ही एक दर्शन है शब्दाद्वैतवाद । शब्द का अद्वैत, शब्द परमब्रह्म है और शब्द ही सब कुछ है । जो हमें दिखाई दे रहा है, वह सारा का सारा शब्द का ही विस्तार है। मूल शब्द ब्रह्म है और वही सब कुछ है । यह है शब्दाद्वैतवाद । यह ठीक वैसे ही विकसित हुआ जैसे ब्रह्माद्वैतवाद विकसित हुआ। ____ आप भी अनुभव करेंगे कि हमारा यह सारा संसार शब्दमय है। कभी आप रेडियो सुनते हैं, ध्वनियां आने लग जाती हैं, शब्द आने लग जाते हैं और ऐसा लगता है कि सारी दुनिया कोलाहलमय हो रही है। सार संसार प्रकम्पनमय है । तरंगें उठ रही हैं । ऊर्मियां उछल रही हैं। जहां तरंग हैं, ऊर्मि है, प्रकम्पन है, वहां ध्वनि है और शब्द हैं । व्याकरण के आचार्यों ने और मन्त्र के आचार्यों ने ध्वनि के चार रूप निर्धारित किए—परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी । परा-यह प्राणमय ध्वनि है। पश्यन्ती—यह मनोमय ध्वनि है। मध्यमा—यह हमारी ध्वनि की व्यंजक-ध्वनि है और वैखरी-यह स्थूल ध्वनि है, जो मैं बोल रहा हूं। आप
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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