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सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते द्वादशमध्ययने गाथा ९
अनिरुद्धप्रज्ञास्तु यथावस्थितार्थवेदिनो भवन्ति, तथाहि अवधिमनः पर्यायकेवलज्ञानिनस्त्रैलोक्योदरविवरवर्तिनः पदार्थान् करतलामलकन्यायेन पश्यन्ति, समस्त श्रुतज्ञानिनोऽपि आगमबलेनातीतानागतानर्थान् विदन्ति येऽप्यन्येऽष्टाङ्गनिमित्तपारगास्तेऽपि निमित्तबलेन जीवादिपदार्थपरिच्छेदं विदधति, तदाह -
जिनकी बुद्धि ज्ञानावरणीय आदि कर्मों से ढँकी हुई नहीं है, वे तो पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को जानते हैं। जैसे कि अवधिज्ञानी, मनःपर्य्यायज्ञानी और केवलज्ञानी, तीनों लोक के पदार्थों को हाथ में रखे हुए आँवले के समान देखते हैं तथा समस्त श्रुतज्ञानी जीव भी आगम के बल से अतीत और अनागत अर्थ को जानते हैं एवं आठ अङ्गवाले निमित्तों को जाननवाले पुरुष भी निमित्त के बल से जीवादि पदार्थो को जानते हैं, यही शास्त्रकार बताते हैं
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संवच्छरं सुविणं लक्खणं च, निमित्तदेहं च उप्पाइयं च । अट्ठगमेयं बहवे अहित्ता, लोगंसि जाणंति अणागताईं
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छाया - संवत्सरं स्वप्नं लक्षणस, निमित्तं देहशौत्पातिकञ्च । अष्टाङ्गमेतद् बहवोऽधीत्य लोके जानन्त्यनागतानि ॥
अन्वयार्थ - ( संवच्छरं सुविणं लक्खणं च ) ज्योतिष, स्वप्नशास्त्र, लक्षणशास्त्र (निमित्तं देहं च उप्पाइयं च ) निमित्त शास्त्र तथा शरीर के तिल आदि का फल बतानेवाला शास्त्र एवं उल्कापात और दिग्दाह आदि का फल बतानेवाला शास्त्र (एयं अट्ठगं अहित्ता) इन आठ अङ्गवाले शास्त्रों को पढ़कर (लोगंसि बहवे) लोक में बहुत से पुरुष (अणागताई जाणंति) भविष्य की बातों को जानते हैं ।
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भावार्थ जगत् में बहुत से पुरुष ज्योतिष शास्त्र, स्वप्नशास्त्र, लक्षणशास्त्र, निमित्तशास्त्र, शरीर के तिल आदि का फल बतानेवाला शास्त्र और उल्कापात तथा दिग्दाह आदि का फल बतानेवाला शास्त्र, इन आठ अङ्गवाले शास्त्रों को पढकर भविष्य में होनेवाली बातों को जानते हैं।
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श्रीसमवसरणाध्ययनम्
टीका "सांवत्सर" मिति ज्योतिषं स्वप्नप्रतिपादको ग्रन्थः स्वप्नस्तमधीत्य "लक्षणं" श्रीवत्सादिकं, चशब्दादान्तरबाह्यभेदभिन्नं, "निमित्तं" वाक्प्रशस्तशकुनादिकं देहे भवं देहं - मषकतिलकादि, उत्पाते भवमौत्पातिकम् • उल्कापातदिग्दाहनिर्घात भूमिकम्पादिकं, तथा अष्टाङ्गं च निमित्तमधीत्य, तद्यथा - भौममुत्पातं स्वप्नमान्तरिक्षमाङ्गं स्वरं लक्षणं व्यञ्जनमित्येवंरूपं नवमपूर्वतृतीयाचारवस्तुविनिर्गतं सुखदुःखजीवितमरणलाभालाभादिसंसूचकं निमित्तमधीत्य लोकेऽस्मिन्नतीतानि वस्तूनि अनागतानि च "जानन्ति" परिच्छिन्दन्ति, न च शून्यादिवादेष्वेतद् घटते, तस्मादप्रमाणकमेव तैरभिधीयत इति ॥९॥
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टीकार्थ ज्योतिष शास्त्र को "संवत्सर" कहते हैं तथा स्वप्न में देखी हुई बात का जो फल बताता है उस ग्रन्थ को "स्वप्न" कहते हैं। इन शास्त्रों को पढ़कर लोग भविष्य की बातों को जान लेते हैं । तथा श्रीवत्स आदि को लक्षण कहते हैं, वह बाह्य और आभ्यन्तर भेद से दो प्रकार का है तथा निमित्त यानी पक्षी और मनुष्य की वाणी तथा प्रशस्त शकुन आदि एवं देह में उत्पन्न माष और तिल आदि का फल बतानेवाला शास्त्र, एवं उल्कापात, दिग्दाह, आकाशगर्जन, और भूकम्प आदि तथा आठ अङ्गवाले निमित्त शास्त्रों को पढ़कर लोग भविष्य की बातों को जानते हैं। वे आठ अङ्ग ये हैं भौम, उत्पात, स्वप्न, अन्तरिक्ष, अङ्ग, स्वर, लक्षण, व्यञ्जन, तथा नवम पूर्व में तीसरा आचार वस्तु प्रकरण में से उद्धृत जो सुख, दुःख, जीवन, मरण और लाभ तथा अलाभ आदि का सूचक निमित्त शास्त्र है, इनको पढ़कर लोग इस लोक में भूत और भविष्य की बातों को जान लेते हैं परन्तु शून्यवाद मानने पर यह नहीं हो सकता है, इसलिए चार्वाक आदि प्रमाण के बिना ही शून्यबोधक शास्त्र का अध्ययन करते हैं ॥९॥
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एवं व्याख्याते सति आह परः -
इस प्रकार क्रियावाद का समर्थन करनेपर परवादी कहता है कि
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