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________________ सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते द्वादशमध्ययने गाथा ८ श्रीसमवसरणाध्ययनम् जाग्रदवस्थायां सत्यां व्यवस्थाप्यते तस्या अभावे तस्याप्यभावः स्यात्ततः स्वप्नमभ्युपगच्छता भवता तन्नान्तरीयकतया जाग्रदवस्थाऽवश्यमभ्युपगता भवति, तदभ्युपगमे च सर्वशून्यत्वहानि:, न च स्वप्नोऽप्यभावरूप एव स्वप्नेऽप्यनुभूतादेः सद्भावात्, तथा चोक्तम् - " अणुहूयदिट्ठचिंतियसुयपयइवियारदेवयाऽणूया । सुमिणस्स निमित्ताई पुण्णं पावं च णाभावो ||१|| इन्द्रजालव्यवस्थाऽप्यपरसत्यत्वे सति भवति, तदभावे तु केन कस्य चैन्द्रजालं व्यवस्थाप्येत ?, द्विचन्द्रप्रतिभासोऽपि रात्रौ सत्यामेकस्मिंश्च चन्द्रमस्युपलम्भकसद्भावे च घटते न सर्वशून्यत्वे, न चाभावः कस्यचिदप्यत्यन्ततुच्छरूपोऽस्ति, शशविषाणकूर्मरोमगगनारविन्दादीनामत्यन्ताभावप्रसिद्धानां समासप्रतिपाद्यस्यैवार्थस्याभावो न प्रत्येकपदवाच्यार्थस्येति, तथाहि - शशोऽप्यस्ति विषाणमप्यस्ति किं त्वत्र शशमस्तकसमवायि विषाणं नास्तीत्येतत्प्रतिपाद्यते, तदेवं संबन्धमात्रमत्र निषिध्यते नात्यन्तिको वस्त्वभाव इति, एवमन्यत्रापि द्रष्टव्यमिति । तदेवं विद्यमानायामप्यस्तीत्यादिकायां क्रियायां निरुद्धप्रज्ञास्तीर्थिका अक्रियावादमाश्रिता इति ॥८॥ कार्थ जैसे जन्मान्ध पुरुष या पीछे से नष्ट नेत्रवाला पुरुष दीपक आदि ज्योतियों के साथ रहकर भी घटपटादि पदार्थो को देख नहीं सकता, उसी तरह अक्रियावादी विद्यमान घटपटादि पदार्थो को तथा उनकी स्पन्दन आदि क्रियाओं को नहीं देख सकते, क्योंकि उनका ज्ञान, ज्ञानावरणीय आदि कर्मों से ढँका हुआ है । सूर्य का उदय सर्वलोक में प्रसिद्ध है । वह समस्त अन्धकार को दूर करता है तथा कमलसमूह को विकसित करता है । वह प्रतिदिन होता हुआ दिखाई देता है । तथा एक देश से दूसरे देश में सूर्य्य की प्राप्ति देखकर उसकी गति भी अनुमित होती है । जैसे देवदत्त गति करके ही एक देश से दूसरे देश में जाता है। इसी तरह सूर्य भी गति करके ही एक देश से दूसरे देश में जाता है तथा चन्द्रमा भी कृष्णपक्ष में प्रतिदिन क्षीण होता हुआ तथा समस्त क्षीण होकर फिर शुक्लपक्ष में एक-एक कला से बढ़ता हुआ पूर्णिमा के दिन सम्पूर्ण अवस्था में प्रत्यक्ष ही देखा जाता है । तथा नदियाँ वर्षाऋतु में जल के तरङ्गों से भरी और बहती हुई प्रत्यक्ष देखी जाती हैं । एवं वृक्ष के कम्पन आदि के द्वारा वायु के बहने का भी अनुमान होता है । नास्तिक इन समस्त वस्तुओं को जो माया और इन्द्रजाल के समान मिथ्या बताते हैं, वह ठीक नहीं है क्योंकि समस्त वस्तु के अभाव मानने पर अमायारूप किसी भी सत्य वस्तु के न होने से माया का भी अभाव होगा । तथा जो माया का कथन करता है और जिसके प्रति माया का कथन किया जाता है इन दोनों के अभाव होने से किस प्रकार माया की व्यवस्था की जा सकती है? । तथा स्वप्न भी जाग्रत् अवस्था होने पर ही होता है, अतः जाग्रत् अवस्था के अभाव होने पर स्वप्न का भी अभाव होगा, अतः स्वप्न माननेवाले चार्वाक के द्वारा जाग्रत् के बिना स्वप्न के न होने से जाग्रत् भी स्वीकृत हो ही जाता है। इस प्रकार जाग्रत् अवस्था को स्वीकार करने पर सर्वशून्यता की हानि होती है । तथा स्वप्न भी अभावरूप नहीं है, क्योंकि स्वप्न में देखे हुए पदार्थ भी बाहर पाये जाते है, अत एव कहा है कि "अणुहुय" इत्यादि । अर्थात् अनुभव किया हुआ, देखा हुआ, चिन्ता किया हुआ, सुना हुआ, प्रकृति का विकार, देवता का प्रभाव, और पुण्य तथा पाप ये स्वप्न के कारण होते हैं परन्तु अभाव कारण नहीं है। तथा दूसरी सच्ची वस्तु होने पर ही इन्द्रजाल की व्यवस्था की जाती है परन्तु जगत् में जब कोई वस्तु सत्य है ही नहीं तब कौन पुरुष किस के प्रति इन्द्रजाल की व्यवस्था करेगा ? । तथा दो चन्द्रमा का प्रतिभास भी रात्रि सत्य होने पर तथा दो चन्द्रमा का प्रतिभास करानेवाला एक चन्द्रमा के सत्य होने पर ही हो सकता है परन्तु सर्वशून्य होने पर नहीं हो सकता । तथा किसी भी वस्तु का अत्यन्त तुच्छरूप अभाव नहीं है क्योंकि अत्यन्ताभावरूप से प्रसिद्ध जो शशविषाण, कूर्मरोम और गगनारविन्द आदि हैं, उनके समासवाच्य अर्थ का ही अभाव है, प्रत्येक पदवाच्य अर्थ का अभाव नहीं है। क्योंकि जगत् में शश (खरगोश) भी है और विषाण ( सींग) भी है, इसलिए शश के मस्तक पर सींग के उगने मात्र का यहां निषेध है, वस्तु का आत्यन्तिक अभाव नहीं है । इसी तरह अन्य स्थानों में भी जानना चाहिए । इस प्रकार अस्ति इत्यादि क्रिया होने पर भी बुद्धि हीन परतीर्थी अक्रियावाद का आश्रय लेते हैं ॥८॥ 1. अनुभूतदृष्टचिन्तित श्रुतप्रकृतिविकारदेवतानूपाः । स्वप्रस्य निमित्तानि पुण्यं पापं च नाभावः ||9|| 2. वेन्द्रजालं प्र० । - ५१९
SR No.032700
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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