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________________ सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते एकादशमध्ययने गाथा ८ श्रीमार्गाध्ययनम् अनि के जीव भी भिन्न- भिन्न हैं (वाउजीवा पुढो सत्ता ) तथा वायु काय के जीव भी अलग- अलग हैं ( तणरुक्खा सबीयगा) इसी तरह तृण, वृक्ष और बीज भी जीव है । भावार्थ- पृथिवी जीव है तथा पृथिवी के आश्रित भी जीव हैं एवं जल और अग्नि भी जीव हैं तथा वायु काय के जीव भी भिन्न भिन्न हैं एवं तृण, वृक्ष, और बीज भी जीव है । टीका - पृथिव्येव पृथिव्याश्रिता वा जीवाः पृथ्वीजीवाः, ते च प्रत्येकशरीरत्वात् "पृथक् " प्रत्येकं "सत्त्वा" जन्तवोऽवगन्तव्याः, तथा आपश्च जीवाः, एवमग्निकायाश्च तथाऽपरे वायुजीवाः, तदेवं चतुर्महाभूतसमाश्रिताः पृथक् सत्त्वाः, प्रत्येकशरीरिणोऽवगन्तव्याः एत एव पृथिव्यप्तेजोवायुसमाश्रिताः सत्त्वाः प्रत्येकशरीरिणः, वक्ष्यमाणवनस्पतेस्तु साधारणशरीरत्वेनापृथक्त्वमप्यस्तीत्यस्यार्थस्य दर्शनाय पुनः पृथक्सत्त्वग्रहणमिति । वनस्पतिकायस्तु यः सूक्ष्मः स सर्वोऽपि निगोदरूपः साधारणो बादरस्तु साधारणोऽसाधारणश्चेति, तत्र प्रत्येकशरीरिणोऽसाधारणस्य कतिचिद्भेदान्निर्दिदिक्षुराह तत्र तृणानि - दर्भवीरणादीनि वृक्षाः चूताशोकादयः सह बीजै: - शालिगोधूमादिभिर्वर्तन्त इति सबीजकाः, एते सर्वेऽपि वनस्पतिकायाः सत्त्वा अवगन्तव्याः, अनेन च बौद्धादिमतनिरासः कृतोऽवगन्तव्य इति । एतेषां च पृथिव्यादीनां जीवानां जीवत्वेन प्रसिद्धिस्वरूपनिरूपणमाचारे प्रथमाध्ययने शस्त्रपरिज्ञाख्ये न्यक्षेण प्रतिपादितमिति नेह प्रतन्यते ॥७॥ - टीकार्थ जो जीव पृथिवी के आश्रय से रहते हैं वे, तथा साक्षात् पृथिवी भी जीवरूप है । इन प्रत्येक जीवों का शरीर पृथक् पृथक् है । अत: इनमें पृथक् - पृथक् शरीरवाला जीव जानना चाहिए । इसी तरह जल भी जीव है, अग्नि भी जीव है तथा वायु भी जीव है। इस प्रकार चार महाभूतों के आश्रित पृथक् पृथक् शरीरवाले जीव जानने चाहिए । अतः पृथिवी, जल, तेज, और वायु के आश्रित पृथक् पृथक् शरीरवाले जीव हैं। आगे बताया जानेवाला वनस्पति, साधारण शरीर है, इसलिए उसके जीव पृथक् पृथक् नहीं भी होते हैं, यह सूचित करने के लिए इस गाथा में अलग "सत्त्व" शब्द का ग्रहण है । वनस्पतिकाय जो सूक्ष्म है, वह सब निगोदरूप है और बादर वनस्पति के साधारण और असाधारण दो भेद हैं। इनमें पृथक् पृथक् शरीरवाले असाधारण वनस्पति के कई भेद बताते हैं - दर्भ (कुश) तथा वीरण आदि तृण, एवं आम और अशोक आदि वृक्ष तथा शाली और गेहूँ आदि बीज ये सब वनस्पति काय के पृथक् पृथक् शरीरवाले जीव हैं । इस कथन से बौद्ध आदि मतों का खण्डन जानना चाहिए । पृथिवी आदि जीवों का जीव होना आचाराङ्ग सूत्र के शस्त्रपरिज्ञा नामक प्रथम अध्ययन में खुलासा करके कहा गया है, इसलिए यहां विस्तार की आवश्यकता नहीं है ॥७॥ - - www - - - षष्ठजीवनिकायप्रतिपादनायाह - अब शास्त्रकार छट्ठा जीव बताने के लिए कहते हैं अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया । 1 एतावए जीवकाए, णावरे कोइ 2 विज्जई ॥ ८ ॥ - छाया - अथाऽपरे त्रसाः प्राणाः, एवं षट्काया आख्याताः । एतावान् जीवकायः नापरः कश्चिद्विद्यते ॥ अन्वयार्थ - ( अहावरा तसा पाणा) इनसे भिन्न त्रसकायवाले जीव होते हैं। ( एवं छक्काय आहिया ) इस प्रकार तीर्थकर ने जीवों के छः भेद कहे हैं। ( एतावए जीवकाए) इतने ही जीवों के भेद हैं। (अवरे कोई ण विज्जती) इनसे भिन्न दूसरा कोई जीव नही होता है। - भावार्थ - पूर्वोक्त पाँच और छट्ठा त्रसकायवाले जीव होते हैं। तीर्थकर ने जीव के छः भेद बताये हैं । अतः जीव इतने ही हैं, इनसे भिन्न कोई दूसरा जीव नहीं होता है । टीका तत्र पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय एकेन्द्रियाः सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्याप्तकभेदेन प्रत्येकं चतुर्विधाः, "अथ" अनन्तरम् “अपरे” अन्ये त्रस्यन्तीति त्रसाः द्वित्रिचतुष्पञ्चेन्द्रियाः कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादयः, तत्र द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः 1. इत्ताव एव प्र० । 2. दृश्यमानेषु बहुष्वादर्शेषु नावरे विज्जती काए इत्येव पाठ उपलभ्यते, प्राङ्मुद्रिते त्वेष ईदृशः, क्वचित् नावरे विज्जती कत्ति पाठः छन्दोऽनुलोम्येन कायस्य स्याद्द्रस्वता चेत्रासुन्दरः सः । ४७५
SR No.032700
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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