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________________ सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते एकादशमध्ययने गाथा ३-४ श्रीमार्गाध्ययनम् दूसरे लोगों को हम किस प्रकार समझावें, इस अभिप्राय से श्री जम्बूस्वामी पूछते हैं . जइ णो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा। तेसिं तु कयरं मग्गं, आइक्खेज्ज ? कहाहि णो ॥३॥ छाया - यदि नः केऽपि पृच्छेयुर्देवा अथवा मनुष्याः । तेषान्तु कतरं मार्गमाख्यास्ये कथय नः ॥ अन्वयार्थ - (जइ केइ देवा अदुव माणुसा, णो पुच्छिज्जा) यदि कोई देवता या मनुष्य हम से पूछे तो (तेसिं कयरं मग्गं आइक्खेज्ज) उनको हम कौन सा मार्ग बतावे ? (णो कहाहि) सो हमें आप कहिए। भावार्थ - जम्बूस्वामी श्री सुधर्मास्वामी से कहते हैं कि - यदि कोई देवता या मनुष्य हम से मोक्ष का मार्ग पूछे तो हम उनको कौन-सा ? मार्ग बतावे. यह आप हमें बतलाईए । टीका - यदा कदाचित् "नः" अस्मान् "केचन" सुलभबोधयः संसारोद्विग्नाः सम्यग्मार्ग पृच्छेयुः, के ते?"देवाः" चतुर्निकायाः तथा मनुष्याः - प्रतीताः, बाहुल्येन तयोरेव प्रश्नसद्धावात्तदुपादानं, तेषां पृच्छतां कतरं मार्गमहम् "आख्यास्ये" कथयिष्ये, तदेतदस्माकं त्वं जानानः कथयेति ॥३॥ टीकार्थ - हे भगवन् ! संसार से घबराये हुए सरल आत्मा कोई चार निकायवाला देवता या मनुष्य हम से सम्यग् मार्ग पूछे तो हमें क्या बताना चाहिए ? आप यह जानते हैं, इसलिए हमें कहिए । देवता और मनुष्य ही प्रश्न कर सकते हैं, इसलिए उन्हीं का इस गाथा में ग्रहण है, दूसरे का नही ॥३॥ A एवं पृष्टः सुधर्मस्वाम्याह - यह पूछने पर श्री सुधर्मास्वामी कहते हैं - जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा । तेसिमं पडिसाहिज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥४॥ छाया - यदि वः केपि पृच्छेयुर्देवा अथवा मनुष्याः । तेषामिमं प्रतिकथयेन्मार्गसारं शृणुत मे ॥ अन्वयार्थ - (जइ केइ देवा अदुव माणुसा) यदि कोई देवता या मनुष्य, (वो पुच्छिज्जा) आप से पूछे तो (तेसिमं पडिसाहिज्जा) उनसे यह मार्ग कहना चाहिए (मग्गसारं मे सुणेह) वह साररूप मार्ग मेरे से सुनो । भावार्थ - श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि यदि कोई देवता या मनुष्य मोक्ष का मार्ग पूछे तो उनसे आगे कहा जानेवाला मार्ग कहना चाहिए । वह मार्ग मेरे से तुम सुनो । टीका - यदि कदाचित् "वः" युष्मान् केचन देवा मनुष्या वा संसारभ्रान्तिपराभग्नाः सम्यग्मार्ग पृच्छेयुस्तेषां पृच्छताम् "इम" मिति वक्ष्यमाणलक्षणं षड्जीवनिकायप्रतिपादनगर्भ तद्रक्षाप्रवणं मागं "पडिसाहिज्जे" ति प्रतिकथयेत्, "मार्गसारम्" मार्गपरमार्थं यं भवन्तोऽन्येषां प्रतिपादयिष्यन्ति तत् "मे" मम कथयतः शृणुत यूयमिति, पाठान्तरं वा "तेसिं तु इमं मग्गं आइक्खेज्ज सुणेह मे" त्ति उत्तानार्थम् ॥४॥ टीकार्थ - हे शिष्यों ! यदि तुम से कोई संसार से खेद पाया हुआ देवता या मनुष्य, सम्यक् मार्ग पूछे तो तुम उनसे छ: काय के जीवों की रक्षा का उपदेश देनेवाला मार्ग कहना । तुम जिस उत्तम मार्ग को दूसरे से कहोगे सो मैं बताता हूँ, सुनो । यहां "तेसिंतु इमं मग्गं आइक्खेज्ज सुणेह में" यह पाठान्तर पाया जाता है । इसका अर्थ यह है कि "उनसे तुम आगे कहे जानेवाले मार्ग का कथन करना । वह मार्ग मैं बताता हूँ॥४॥ ४७२
SR No.032700
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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